हैरान रह गए CSIR-IHBT के डायरेक्टर इस तथ्य को जान कर, पूर्व विधायक प्रवीन कुमार ने केन्द्रीय मन्त्री डा जितेन्द्र सिंह की सेवा में प्रेषित की महत्वपूर्ण प्रस्तावना
पूर्व विधायक प्रवीन कुमार ने राज्य सभा सांसद इन्दु के माध्यम से केन्द्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डा जिन्तेद्र सिंह जी की सेवा में पालमपुर में नैशनल वायोलॉजिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट के नाम दर्ज लगभग 11 – 50 – 12 हेक्टर भूमि पर धॊलाधार नामक जैव विविधता संरक्षण संस्थान खोलने वारे प्रेषित की प्रस्तावना ।
आज समाज सेवा मे समर्पित इन्साफ संस्था के अध्यक्ष एवं पालमपुर के पूर्व विधायक प्रवीन कुमारव सचिव धीरज ठाकुर राज्य सभा सांसद सुश्री इन्दु गोस्वामी से पालमपुर स्थित कार्यालय में मिले ओर उनके माध्यम से केन्द्रीय मन्त्री डा जितेन्द्र सिंह जी की सेवा में प्रस्तावना प्रेषित की ।
अपने लिखे पत्र में पूर्व विधायक ने जानकारी देते हुए बताता कि वर्ष 1992 में तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री शान्ता कुमार जी ने उस बक्त के प्रधानमंत्री श्रद्धेय श्री चन्द्र शेखर जी के कर कमलों से पालमपुर स्थित टिक्का निहंग के पास उपरोक्त रकवे पर महत्वकांक्षी वन लगाओ , रोजी कमाओ योजना के तहत पौधा रोपण करवा कर इस योजना का शुभारंभ किया था । परिणामस्वरूप वन विभाग ने बाकायदा इसी जगह पर नर्सरी अर्थात पौधशाला स्थापित की ।
इससे पूर्व 90 वें के दशक में ही पालमपुर में भारत जर्मन – चंगर परियोजना की भी स्थापना की गई । अव जबकि वर्तमान में भारत – जर्मन चंगर परियोजना बन्द हो चुकी है और न ही अब यहां मोके पर किसी प्रकार की कोई पौधशाला है।
पत्र में पूर्व विधायक ने बताया कि यहां पूर्व प्रधानमंत्री के नाम की लगी उदघाटन पट्टिका गायब है साथ ही यहाँ उदघाटन पेडेस्टल की दुर्दशा को देखकर संस्था ने इस स्थल को “चंद्रशेखर वाटिका” के नाम पर संबारने का निर्णय लिया और इसी विषय को लेकर संस्था ने वन मंडल अधिकारी पालनपुर से आग्रह किया कि “अमर शहीद परमवीर चक्र विजेता कैप्टन विक्रम बत्रा” राजकीय महाविद्यालय की ओर जाने वाले इस मार्ग के साथ लगते इस स्थल को या तो विभाग चंद्रशेखर वाटिका के नाम पर संवारे या इसके सौन्दर्य करण के लिए संस्था को अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी किया जाए ।
वन विभाग ने अवगत करवाया कि मोके पर कब्जा कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर का है । उसके बाद संस्था ने कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर से संपर्क किया और इसी तर्ज पर निवेदन किया कि या तो कृषि विश्वविद्यालय इस स्थल को चंद्रशेखर वाटिका के नाम पर संबारे या इसके लिए संस्था को अनापत्ति प्रमाण पत्र प्रदान किया जाए ।
इस तरह दोनों विभागों को ही राजस्व अभिलेख की स्थिति पूर्णता स्पष्ट न होने के कारण अन्ततोगत्वा संस्था ने तहसीलदार महोदय के माध्यम से राजस्व रिकार्ड खंगाला और पता चला कि तहजमीन पर मालिकाना हक न तो वन विभाग का है और न ही कृषि विश्वविद्यालय का है जबकि राजस्व अभिलेख में यह रकवा नेशनल बायोलॉजीकल रीसर्च इन्सिटच्यूट के नाम पर दर्ज है।
इस तरह लम्बी प्रक्रिया से जूझने के उपरांत संस्था ने निदेशक हिमालयन जैव प्रौद्योगिकी संस्थान (सीएसआईआर) पालमपुर से संपर्क किया ।
पूर्व विधायक ने बताया कि विषय कितना रोचक है कि इतने बड़े राजस्व रकवे के दस्तावेज जब संस्था ने निदेशक आईएचबीटी को सेवा में प्रेषित किये तो महोदय हैरान रह गये कि इतनी ज्यादा जमीन पर नैशनल बायोलॉजीकल रिसर्च इन्स्टीच्यूट का मालिकाना हक होने के बावजूद भी हिमालयन जैव प्रौद्योगिकी प्रशासन को इसका पता तक नहीं ।
इस तरह संस्था ने निदेशक आईएचबीटी से भी आग्रह किया किया गया कि या तो हिमालयन जैव प्रौद्योगिकी संस्थान इस स्थल को संवारे या इसके सौन्दर्यकरण के लिए संस्था को अनापत्ति प्रमाण पत्र प्रदान करने की कृपा की जाए ।
अन्ततः अब इस मामले को उपरोक्त वर्णित तथ्यों एवं संलग्न राजस्व अभिलेख सहित आपकी सेवा में प्रेषित करते हुए संस्था ने आपके ध्यानार्थ यह भी लाना है कि जैसा कि संस्था को अवगत करवाया गया कि 50 के दशक में पालमपुर को यह नेशनल बायोलॉजीकल रिसर्च इन्सटीच्यूट मिला था लेकिन किन परिस्थितियों के चलते उस वक्त यह इतना बड़ा संस्थान यहां से लखनऊ चला गया जिसका संस्था को बेहद खेद है ।
पत्र मे पूर्व विधायक ने कहा है ।
पूर्व विधायक ने कहा कि आज विश्व में जैव विविधता का सबसे बड़ा खजाना हिमाचल में है।
ऐसे में वैज्ञानिक शोषण और चोरी के चलते देश को इस जैविक संपदा का बहुत नुकसान हो रहा है साथ ही इस जैव संपदा को चुरा कर विदेशी नई नई प्रजातियों को प्रयोगशाला में तैयार करके अपने अपने देश की अर्थव्यस्था को सुदृढ़ कर रहे हैं।
इस तरह इस सर्वोत्तम स्थल पर धौलाधार नामक जैव विविधता संरक्षण संस्थान का खुलवाने की कृपा की जाए ।