सरकारें भी गजब है, चार साल वायदों में बीत जाते है और अंतिम वर्ष उनसे उलझने में बीत जाता है : PRAVEEN SHARMA

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लेखक :

प्रवीण शर्मा ,पालमपुर

सरकारें भी गजब है, चार साल वायदों में बीत जाते है और अंतिम वर्ष उनसे उलझने में बीत जाता है जिनसे वायदे किए थे । जब वायदे पूरे नही होंगें तो जनता है जबाब तो पूछेगी । जनता ताज पहनाती है तो ताज उतारना भी जानती है क्योंकि ताज उन्ही पर जचते हैं जो अपने द्वारा किए वायदों को स्वर मुखर होने से पहले पूरा कर दे ।
पेंशन बहाली सयुंक्त मोर्चा हिमाचल प्रदेश पेंशन मुद्दे पर सरकार से सम्मानजनक पेंशन देने पर वार्ता के लिए तैयार है । परन्तु सरकार भी इस जायज बात को सकारात्मक तरीके से कर्मचारी हित में सोचे व इसे करुणा आधार पर लागू करे क्योंकि पीड़ित लोगों की आह भी देश की समृद्धि के रास्ते मे बाधा हैं । चारों दिशाओं में खुशहाली हो यही देश की समृद्धि का मूल मंत्र है । रोजगार सम्मानजनक मानदेय पर सबको मिले तो मुफ्त खोरी भी खत्म हो जाएगी । कर्मचारियो को तरह तरह के नाम रखकर भर्ती करना भी एक बुराई है जिस कारण कर्मचारी देश की समृद्धि में अपना पूरा योगदान देने में असमर्थ हैं क्योंकि जब देश के कर्मचारियों का भविष्य ही सुरक्षित नही है तो वे देश का भविष्य कैसे सुरक्षित कर पाएंगे । आज हर कर्मचारी का अपना अपना मुद्दा है कुछ आउटसोर्स प्रथा से दुखी है ,कुछ बेरोजगारी से दुखी हैं , कुछ बुढ़ापे में पेंशन न मिलने के कारण दुखी हैं , कुछ चाहते हैं कि नियुक्ति तिथि से वरिष्ठता लाभ मिले । मुद्दे तो सभी जायज हैं पर कर्मचारी हर मुद्दे पर बंटे हैं जिस कारण अपना जोरदार पक्ष किसी भी मुद्दे पर नही रख पाते । जबकि देखा जाता रहा है कि लोग यह हक प्राप्त करना चाहते है पर घरों से बाहर निकल कर नही बल्कि घरों के अंदर रहकर की हक चाहिए । अगर निस्वार्थ भाव से जायज मांगों पर बात रखी जाए तो हर मांग मान्य होगी परन्तु स्वार्थ से परिपूर्ण लोग स्वार्थवश अपनी ही जायज मांगों को हाशिये पर धकेल देते हैं और सरकार भी चुप रहकर स्वार्थी लोगों का ही साथ देने तक सीमित रहती है । पीड़ित लोग अपनी पीड़ा सरकार को ही सुनाएंगे अगर सरकार नही सुनेगी तो फिर किस ताकत को अपना दुखड़ा सुनाएंगे । सरकार हर कर्मी की पीड़ा समझती है पर समय पर उस पीड़ा का समाधान न करना कर्मियों की अनदेखी है । मोर्चा सदैव महात्मा गांधी जी के पद चिन्हों पर चलकर अपने कर्मचारियों के लिए कार्य कर रहा है । कर्मचारियों को भी चाहिए कि वे भी अपना कर्तव्य समझ कर योगदान करें । आज महिलाएं घर की कैद से बाहर निकल कर देश की समृद्धि में अपना योगदान दे रही हैं परन्तु अपने अधिकारों के लिए अभी भी सजग नही हैं क्योंकि अगर पेंशन के मुद्दे पर ही कहे तो कुछ महिलाओं का कहना है कि हमारे पति को पुरानी पेंशन है तो हमें जरूरत नही है । कुछ का कहना है कि कुछ लोग लड़ रहे हैं उन्हें मिलेगी तो हमें भी पेंशन मिल जाएगी ।ऐसी सोच हमारे बहुत से कर्मचारियों की है परन्तु जब अन्य अधिकारों पर कैंची चलेगी तब इन्हें अपनी सोच बदलनी होगी । अपने जायज हक की बात करना साथ देना देश द्रोह नही बल्कि देश भक्ति है ।

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