भारतीय न्याय प्रणाली सवालों के घेरे में, अपराधियों के प्रति नरमी: न्यायपालिका की कमजोरी, आम जनता के हितों की अपेक्षा













न्यायपालिका की विफलता और जनता के हितों की अनदेखी
भारतीय न्यायपालिका, जिसे न्याय का स्तंभ माना जाता है, वर्तमान में अपनी धीमी और जटिल प्रक्रिया के कारण जनता के विश्वास को खोती जा रही है। ऐसे समय में जब अपराध और आतंकवाद तेजी से बढ़ रहे हैं, न्यायपालिका की धीमी गति और अनिश्चित प्रणाली सवालों के घेरे में है।
लाल किला हमला: न्याय की विफलता का प्रतीक
साल 2000 में दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले पर हुए आतंकी हमले में तीन भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे। इस हमले का मुख्य आरोपी मोहम्मद अरिफ था, जिसे दिल्ली पुलिस ने चार दिनों में गिरफ्तार कर लिया। लेकिन इसके बाद जो हुआ, वह भारतीय न्याय प्रणाली की कमजोरियों को उजागर करता है। अरिफ को सजा दिलाने में दशकों का समय लग गया। यह घटना न्यायपालिका की सुस्त प्रक्रिया और पीड़ितों के हितों की उपेक्षा का जीवंत उदाहरण है।
न्यायिक प्रक्रिया: अपराधियों के लिए वरदान
2005 में ट्रायल कोर्ट ने अरिफ को मौत की सजा सुनाई। फिर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने इसे सत्यापित करने में कुल 7 साल और लगा दिए। उसके बाद भी रिव्यू और कर्यूटिव याचिकाओं के चलते यह मामला खिंचता चला गया। यह प्रक्रिया इतनी लंबी और जटिल है कि अपराधियों के लिए सजा से बचने का साधन बन जाती है। क्या ऐसी प्रणाली को प्रभावी कहा जा सकता है जो पीड़ितों को न्याय देने के बजाय अपराधियों को अधिक समय और अवसर देती है?
आर्थिक और सामाजिक हानि
इस तरह की धीमी न्यायिक प्रक्रिया का असर केवल पीड़ित परिवारों तक सीमित नहीं रहता। यह पूरे समाज और राष्ट्र को प्रभावित करती है। करदाताओं के पैसे पर पलने वाले ऐसे अपराधियों को न्यायिक प्रक्रिया के नाम पर वर्षों तक बिना सजा के रखा जाता है। इससे न केवल जनता में न्याय व्यवस्था के प्रति अविश्वास बढ़ता है, बल्कि अपराधियों और भ्रष्टाचारियों को प्रोत्साहन मिलता है।
न्यायपालिका की भूमिका पर सवाल
भारतीय न्यायपालिका का उद्देश्य केवल अपराधियों को दंड देना नहीं है, बल्कि एक ऐसा न्याय तंत्र स्थापित करना है जो तेज, पारदर्शी और निष्पक्ष हो। लेकिन क्या मौजूदा प्रक्रिया जनता के हित में है? न्यायपालिका को यह समझना होगा कि न्याय का उद्देश्य अपराधियों को बचने का मौका देना नहीं, बल्कि पीड़ितों और समाज को सुरक्षा प्रदान करना है।
न्याय प्रणाली में सुधार की आवश्यकता
समय की मांग है कि हमारी न्यायिक प्रणाली में व्यापक बदलाव किए जाएं। इसके लिए जरूरी है:
1. त्वरित न्याय: दोषियों को शीघ्र सजा दिलाने के लिए प्रक्रियाओं को सरल और तेज किया जाए।
2. दुरुपयोग की रोकथाम: रिव्यू और कर्यूटिव याचिकाओं का दुरुपयोग रोकने के लिए सख्त नियम बनाए जाएं।
3. पारदर्शिता: न्याय प्रणाली को अधिक पारदर्शी बनाया जाए, ताकि जनता का इसमें विश्वास बढ़े।
4. आधुनिक तकनीक का उपयोग: मामलों के निपटारे में तकनीकी उपायों का सहारा लिया जाए, जिससे देरी को कम किया जा सके।
अपराधियों के प्रति नरमी: न्यायपालिका की कमजोरी
आज की न्याय प्रणाली इस हद तक अपराधियों के प्रति झुकी हुई प्रतीत होती है कि वह न्याय का उपहास बन गई है। अदालतें अपराधियों और उनके वकीलों को असीमित अवसर प्रदान करती हैं, जबकि पीड़ित परिवार न्याय की उम्मीद में टूट जाते हैं। क्या यही हमारी “अद्भुत” न्याय व्यवस्था है?
न्यायपालिका को पुनः जागरूक होना होगा
भारतीय न्यायपालिका को अपनी प्राथमिकताओं पर पुनर्विचार करना होगा। उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि न्याय केवल अपराधियों को बचाने का जरिया न बने, बल्कि जनता के हितों की रक्षा के लिए काम करे। यह समय है कि हमारी न्याय प्रणाली खुद को एक मजबूत और प्रभावी प्रणाली के रूप में स्थापित करे, जहां पीड़ितों को न्याय मिले और अपराधियों को सजा।
निष्कर्ष
भारतीय न्यायपालिका को अपनी कमजोरियों को दूर कर जनता के विश्वास को पुनः जीतना होगा। न्यायिक प्रक्रिया को तेज और पारदर्शी बनाना आज की आवश्यकता है। जब तक ऐसा नहीं होगा, न्यायपालिका पर लगे ये सवाल और आलोचनाएं बनी रहेंगी।



