रमेश भारद्वाज ने Use And Throw” (पूराने निकालो और नए रखो) वाली पॉलिसी के बारे में अवगत करवाया विक्रमादित्य सिंह (कांग्रेस) को

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धाड़ता क्षेत्र, धर्मपुर, सरकाघाट से संबंध रखने वाले सार्वजनिक कार्यकर्ता, लेखक एवं विचारक – रमेश भारद्वाज उर्फ रमेश चन्द ने विक्रमादित्य (कांग्रेस) से मिलकर, उन्हें प्राइवेट सैक्टर में “Use And Throw” (पूराने निकालो और नए रखो) वाली पॉलिसी के बारे में अवगत करवाया, जिससे प्राइवेट सैक्टर में काम करने वाले हमारे युवाओं का भविष्य भी उज्ज्वल हो। इन्होंने सबसे अनुरोध किया है कि जहां कहीं भी किसी भी पार्टी का कोई भी नेता कहीं भी मिले, उसे इस बारे अवगत करवाएं और प्राइवेट सैक्टर में काम करने वाले लोगों का भविष्य भी सुनिश्चित करे। उन्होंने कहां कि काफ़ी बड़ी बड़ी कंपनियां नेताओं के इशारे और देख रेख में ही चल रही , और काफ़ी कंपनियों में लोगों का शोषण हो रहा हैं। काफ़ी कंपनियां युवाओं को रखती किसी और काम के लिए हैं लेकिन काम कुछ और भी लेती हैं। उन्होंने अदानी ग्रुप के चेयरमैन – गौतम अदानी का हवाला देते हुए कहां कि, मुझे खुशी है कि विश्व का दूसरा अमीर व्यक्ति , मेरे देश का हैं, लेकिन जो लोग वहां काम कर रहे हैं, उनमें से बहुतों का भविष्य सुरक्षित नहीं हैं। वो सरकार से प्राइवेट सैक्टर में काम करने वाले व्यक्तियों के लिए भी एक अच्छी बुढ़ापा पेंशन हो, जिससे कि वो अपने बच्चों की पढ़ाई लिखाई और शादी विवाह करवा सके। और इसके लिए वो पहले ही सरकार को लिख चुके हैं। हालंकि वो चाहते हैं कि अदानी, अंबानी और टाटा इत्यादि ज्यादा से ज्यादा लोग, भारत में हों, जिससे हमारे देश के युवाओं को रोज़गार मिले, लेकिन इसके साथ साथ सरकार लोगों का भविष्य भी सुनिश्चित करे। न्यू लेबर कोड और ठेकेदारी प्रथा किसी को भी मान्य नहीं और ईमानदार व्यक्ति के लिए आठ घंटे ही काम करने के लिए काफ़ी होते हैं।

अगर सरकार इन कंपनियों या कारखानो में काम कर रहे लोगों का भविष्य सुनिश्चित नहीं कर सकती तो फिर सभी को, सरकार सरकारी नौकरी दे, हालांकि वो इस पक्ष में कदापि नहीं हैं, कि सभी को सरकारी नौकरी दे दी जाए, क्यूंकि प्राइवेट सैक्टर का देश की तरक्की में एक अलग से बहुमूल्य योगदान है तथा प्राइवेट सैक्टर का अपना एक अलग ही महत्व है।

रमेश भारद्वाज उर्फ रमेश चन्द को प्राइवेट सैक्टर में काम करने का तकरीबन पच्चीस वर्ष का अनुभव है और उन्होंने ये सब अपनी आंखों से देखा है तथा झेला भी है। उन्होंने खासकर वरिष्ठ नागरिकों से अपील की है की वो इस नेक काम में आगे आएं। जब युवाओं से नौकरी से बिना वज़ह के नौकरी के निकाल दिया जाता है तो बहुत से मां बाप अपने बच्चों की काबिलियत या लगन पर शक करने लगते हैं, जबकि असलियत से वो और युवा वाकिफ नहीं होते।

उद्योगपतियों को ये भी समझना पड़ेगा कि जब भी किसी को नौकरी पर रखते हैं, तो उनकी काबिलियत – अच्छी शिक्षा और तजुर्बे पर ज्यादा ध्यान देते हैं, अरे भई जब आप जैसे लोग, किसी को नौकरी से निकाल ही देंगे, तो फिर, वो आपके लिए शिक्षित युवा कैसे और कहां से देंगे। युवाओं को नौकरी से निकाले बाद कई युवा गलत रास्ते पर भी जाते होंगे, जिसका खामयाजा अन्य निर्दोष जनता को भुगतना पड़ता है और बिना मतलब के पुलिस का काम भी बढ़ जाता है।

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