भ्रष्टाचार! वन विभाग में भ्रष्टाचार का तांडव, क्रमवार तरीके से हो रहा भ्रष्टाचार विकास और प्रगति के लिए बड़ी चुनौती, सरकार की नज़रों से कोसों दूर है पूरा मामला, प्रदेश की आत्मनिर्भरता को न जाने कब से डंस रहा रिश्वतखोरी का नाग, सरकार के पास मुंह ताकने के अलावा कोई चारा नहीं
“कलम के सिपाही अगर सो जाएं तो वतन के कथित मसीहा वतन बेच देंगे… वतन बेच देंगे…”
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शिमला : राजेश सूर्यवंशी
हिमाचल प्रदेश वन विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार: विकास और प्रगति के लिए बड़ी चुनौती
हिमाचल प्रदेश में वन विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार की गहरी जड़ें राज्य की प्रगति और विकास के लिए एक गंभीर चुनौती के रूप में उभर रही हैं।
“मिशन अगेंस्ट करप्शन सोसाइटी हिमाचल प्रदेश” द्वारा किए गए विश्लेषण से यह स्पष्ट हुआ है कि विभाग के भीतर एक बड़ा भ्रष्टाचार नेटवर्क सक्रिय है, जिसमें कई उच्च पदस्थ अधिकारी शामिल हैं।
हाल ही में नाहन के एमडी फॉरेस्ट डिपार्टमेंट को 50,000 रुपये की रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया गया है। यह तो मात्र ट्रेलर है, अभी तो वह विभाग के भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों की पूरी फ़िल्म बाकी है जो किश्तों में तफ़्तीश के साथ आपको दिखाई जाएगी।
वन विभाग में कई बड़ी मछलियां हैं जिनकी पहुंच ऊपर तक है। सरकार कोई भी हो, ये मछलियां हमेशा कानून की गिरफ्त से दूर रह कर खुलेआम अपना काम करती हैं।
आज भी कई मगरमच्छ प्रदेश को खोखला करने में लगे हैं जिन पर शिकंजा कसना लाज़मी है। लेकिन बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा, यही देखना है।
उक्त रिश्वतखोरी की यह घटना अकेली नहीं है, बल्कि कई अन्य अधिकारी भी भ्रष्टाचार में लिप्त पाए गए हैं। वन विभाग के कई ऐसे प्रोजेक्ट हैं जिनकी टेंडरिंग में जबरदस्त हेराफेरी की जाती है करोड़ के टेंडर दिए जाते हैं और मौके पर 25% काम की पूरा नहीं हो पाता। सारा माल अधिकारियों और उनके चहेते ठेकेदारों की जेब गर्म करता है।
इनमें एपीओ, डीपीओ, डीएफओ, आरओ आदि शामिल हैं। भ्रष्टाचार की ये घटनाएं न केवल विभाग की छवि को धूमिल करती हैं, बल्कि राज्य के विकास कार्यों को भी बाधित करती हैं।
पंजाब के मोहाली में भी वन विभाग के दो अधिकारियों को भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। यह मामला वन भूमि और पेड़ों की खरीद-फरोख्त से जुड़ा था, जो हिमाचल प्रदेश के लिए भी एक चिंताजनक संकेत है। इसमें आईएफएस अधिकारी और डीएफओ शामिल हैं।
हिमाचल प्रदेश जैसे राज्य में जहां आर्थिक संसाधनों की पहले से ही कमी है, वहां भ्रष्टाचार की यह व्यापकता बेहद चिंताजनक है। भ्रष्टाचार के कारण विकास परियोजनाओं में देरी होती है और जनता तक उनका लाभ नहीं पहुंच पाता। इसके अतिरिक्त, यह राज्य की आर्थिक स्थिति को भी कमजोर करता है।
राज्य सरकार के लिए यह अनिवार्य हो गया है कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदम उठाए और दोषी अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे।
अब अगर प्रदेश सरकार की बात करें तो यह बड़े-बड़े आला अधिकारी वन विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार को सरकार की नजरों में आने ही नहीं देते लेकिन क्रमबद्ध तरीके से जब सरकार पूरे मामले की छानबीन करेगी तो पता चलेगा कि केवल वन विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार पर लगाम कस कर ही सरकार को आराम से चलाया जा सकता है। यह हरा सोना है जो सरकार के लिए वरदान साबित हो सकता है।
साथ ही, जनता को भी भ्रष्टाचार के खिलाफ जागरूक होना चाहिए और इस लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। केवल तभी हिमाचल प्रदेश आत्मनिर्भर, स्वावलंबी और प्रगतिशील राज्य बन सकेगा, जो केंद्र सरकार के पैसे पर निर्भर नहीं रहेगा।