पालमपुर पुलिस-प्रशासन किस मासूम की मौत का कर रहे इंतज़ार, रोटरी आई हॉस्पिटल के वाहनों की तंग नेशनल हाईवे पर हो रही अनाधिकृत पार्किंग पर उठ रहे सवाल, मामला कई बार उठाया लेकिन नहीं जागे विभाग, अब थक-हार कर डीसी कांगड़ा और एसपी से लगाई गुहार
रोटरी आई हॉस्पिटल मारंडा के वर्तमान दयनीय हालात इस बात का संकेत दे रहे हैं कि पालमपुर पुलिस-प्रशासन लगता है किसी बेकसूर, मासूम की मौत का इंतज़ार कर रहा है, उसके बाद ही उनकी कुम्भकर्णी नींद खुलेगी।
उल्लेखनीय है कि रोटरी आई हॉस्पिटल के वाहनों की डिवाइडर वाली तंग नेशनल हाईवे पर पिछले कई सालों से हो रही अनाधिकृत पार्किंग पर गम्भीर सवाल उठ रहे हैं क्योंकि आए दिन अस्पताल के बाहर सड़क के किनारों पर दोनों ओर हो रही अवैध पार्किंग की वजह से कोई न कोई दुर्घटना होती ही रहती है। यह मामला HR Media Group ने कई बार पुलिस और प्रशासन के समक्ष उठाया है लेकिन नहीं जागे विभाग के कोई भी अधिकारी।
अब मज़बूरन थक-हार कर डीसी कांगड़ा और एसपी से मीडिया ने गुहार लगाई है कि वे स्थिति का पूरी तरह आंकलन करके तत्काल प्रभावी कदम उठाएं ताकि किसी बेगुनाह को रोटरी आई हॉस्पिटल की लापरवाही की सजा न भुगतनी पड़े।
गौरतलब है कि सुबह लगभग 7 बजे से ही नेशनल हाईवे पर, रोटरी आई हॉस्पिटल के मुख्य गेट के बाहर सड़क के दोनों ओर अस्पताल में आने वाले लोग अपने वाहन पार्क करके पर्ची बनवाने के लिए लंबी कतारों में खड़े हो कर अपनी बारी की प्रतीक्षा करते हैं और बाहर सड़क पर लग जाता है भयंकर जाम। दो प्राइवेट पार्किंग स्थल भी पड़ जाते हैं नाकाफी।
यही वो जगह है जहां बसें रुकती हैं। नन्हे-मुन्ने स्कूली बच्चे स्कूल बसों में चढ़ते हैं तथा कभी भी किसी दुर्घटना होने की आशंका बनी रहती है। हाल ही में ट्रैफिक हलचल के कारण गलत और से जबरदस्ती वाहन निकालने के कारण दो बच्चे भयंकर दुर्घटना का शिकार होते होते बचे और यह पूरे दिन भर की रूटीन है। अगर भगवान न करें किसी के साथ कोई दुर्घटना हो जाए तो उसका जिम्मेदार कौन होगा…. पुलिस- प्रशासन, नेशनल हाईवे या रोटरी आई हॉस्पिटल के चेयरमैन? किसके माथे पर लगेगा किसी मासूम की हत्या का दाग?
ऐसा नहीं है की मामले की शिकायत पुलिस प्रशासन के संज्ञान में नहीं है बल्कि सच तो यह है कि हाल ही में नगर निगम मारंडा की पार्षद ने इस अवैध पार्किंग व इससे होने वाले जान-माल के नुकसान का ब्यौरा डीएसपी पालमपुर को दिया था लेकिन बिना किसी एक्शन के डीएसपी महोदय रिटायर भी हो गए और हालात और भी गंभीर रूप धारण करते जा रहे हैं।
लोगो ने नगर निगम से दरख़्वास्त की है कि अतिशीघ्र रोटरी आई हॉस्पिटल के पास सड़क के किनारे मारंडा मेन बाजार की तर्ज़ पर फुटपाथ का निर्माण करवाया जाए।
इसके दो बड़े फायदे होंगे… एक तो कब्ज़ा नाजायज पर लगाम लगेगी दूसरा अनाधिकृत पार्किंग की समस्या जड़ से खत्म होने से आम जनता का जीवन सुरक्षित हो सकेगा।
वैसे मामले की गहराई तक सोचा जाए तो अवैध पार्किंग का मुख्य श्रेय रोटरी आई हॉस्पिटल के चेयरमैन को जाता है जो समस्या की गंभीरता से परिचित होने के बावजूद आंखों पर अनभिज्ञता की पट्टी बांधे हुए है ।
खुद तो हॉस्पिटल महीने मैं करोड़ों रुपए चैरिटेबल के नाम पर लोगों से कमा रहा है लेकिन एक सुव्यवस्थित पार्किंग स्थल लोगों को मुहैया करवाने में नाकामयाब रहा है।
अभी हाल ही में चेयरमैन श्री केजी बुटेल ने एक प्रेस मीट बुलाई थी जिसमें एक पत्रकार ने जब अस्पताल की अवैध पार्किंग का मसला उठाया तो चेयरमैन महोदय बगलें झांकने लगे तथा जो योजना उन्होंने बताई उसे सुन कर कोई भी अपनी हंसी नहीं रोक पाए।
उन्होंने अपनी उच्चकोटि की सूझबूझ का परिचय देते हुए जवाब दिया कि वाहनों की पार्किंग के लिए अस्पताल से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर विद्या भूपेंद्र रोटरी चाइल्ड एंड वीमेन केअर हॉस्पिटल के प्रांगण में पार्किंग बनाई जाएगी वहां से रोगियों को दूसरी गाड़ी में उठाकर आई हॉस्पिटल में लाया जाएगा। बाकी लोग या तो बसों में अपने छोटे बच्चों को उठाकर या पैदल चल कर यहां आएंगे और फिर वापिस अपनी गाड़ियों तक जाएंगे। फिर जिस होटल या रेस्ट हाउस में ठहरना होगा, वहां का रुख करेंगे यानि एक कहावत भी है न कि… सफर ई मकाई गिया..। सच होती दिखेगी।
फिलहाल तो किसी ने उनकी इस बेतुकी हास्यास्पद सी योजना पर ध्यान नहीं दिया क्योंकि ऐसा कतई संभव ही नहीं है।
अब अगर मामले के दूसरे पहलू पर नजर दौड़ाई जाए तो यह बात सर्ववदित है कि वर्तमान में अस्पताल के पास पर्याप्त पार्किंग है एक बार तीन प्रांगण में और दूसरी अंडरग्राउंड जहां लगभग 80-100 वाहन पार्क किए जा सकते हैं।
पाठकों को याद होगा कि कुछ समय पहले रोटरी आई फॉउंडेशन ने सभी दुकानदारों को अस्पताल प्रेमिसेस से उठाकर यहां पार्किंग बनाए जाने का निर्णय लिया था तथा एक भूमिगत पार्किंग लोगों को सौंपने की बात कही थी जोकि सरासर झूठ का पुलिंदा निकली। मुख्य मकसद था दुकानदारों को बाहर करना जिसमें फाउंडेशन कामयाब भी रही। लेकिन रोगियों और उनके तामीरदारों के साथ छल कर दिया।
अर्थात दोनों पार्किंग स्थलों को अस्पताल ने अपनी सहूलियत के लिए रोगियों और उनके अभिभावकों के लिए सख़्ती बरतते हुए पूरी तरह से बंद कर दिया जोकि आज भी लड़ाई-झगड़े का सबब बनता रहता है। इसी वजह से बेचारे कई सिक्योरिटी गार्ड नोकरी छोड़ कर भी जा चुके हैं। क्योंकि अपने कुछ सगे लोगों को छोड़कर बाकी सबके लिए दोनों पार्किंगों के दरवाजे आम लोगो के लिये पूर्णतया बन्द कर दिए गए हैं। रोगी चाहे 200 किलोमीटर दूर से आया हो, जाए भाड़ में।
पुलिस-प्रशासन को चाहिए कि अस्पताल के चेयरमैन पर दवाब बनाए कि दोनों पार्किंगों को रोगियों के लिए mandatory बनाया जाए और अस्पताल के प्रांगण में चश्मे की दुकानों को ग्राहकों के लिये ओझिल करने के उद्देश्य से जो छतनुमा
आकृति बनाई गई है उसे तोड़ कर पार्किंग की जगह को विस्तृत किया जाए। इससे पार्किंग की समस्या स्वयं ही समाप्त हो जाएगी तथा लोग राहत की सांस लेंगे।
ज्ञातव्य है कि जब दो निजी पार्किंग स्थल अस्तित्व में नहीं थे तब भी तत्कालीन founder चेयरमैन डॉ. शिव कुमार की सूूझबूझ से सभी वाहन अस्पताल की निजी पार्किंग में ही एडजस्ट होते थे। तब तो कोई समस्या पेश नहीं आती थी ।
उनके जाते ही ऐसा क्या हो गया की सूझबूझ की इतनी अधिक कमी आ गई है।