श्री शांता कुमार और स्व. अटल बिहारी वाजपेयी सरीखे महान आदर्शवादी राजनेताओं की तलाश है भारत की मातृभूमि को, जो न झुके, न रुके, न थके और न बिके, अपनी कुर्सी की बलि चढ़ा दी महान आदर्शों की ख़ातिर
गलत का विरोध खुलकर कीजिए, चाहे राजनीति हो या समाज, इतिहास टकराने वालो का लिखा जाता हैं तलवें चाटने वालों का नहीं..
भारत की ईमानदार, स्वच्छ एवम आदर्श राजनीति के भीष्मपितामह युगप्रवर्तक श्री शान्ता कुमार ने इतिहासकार एवं ब्यूरोक्रेट श्री पीसीके प्रेम द्वारा रचित *श्रीमद्भागवत गीता महापुराण* के हिमोत्कर्ष संस्तग द्वारा प्रायोजित विमोचन कार्यक्रम के शुभावसर पर अपनी आपबीती सुनाते हुए कहा कि श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि भाग्य में जो लिखित है वह मिलकर रहेगा, जो होना है वह घटित होकर रहेगा। जो चला गया, छूट गया उसका पश्चाताप न कर। सही राह को चुनो।
कुछ ऐसा ही उनके साथ भी हुआ जब वह मुख्यमंत्री थे।
अचानक कुछ विधायक उन्हें छोड़ कर जाने लगे और उनकी सरकार अल्पमत में आ गई। बहुत दुविधापूर्ण स्थिति थी। वह दोराहे पर खड़े थे। अपनेआप से युद्ध कर रहे थे की सरकार को कैसे बचाया जाए।
अभी वह इसी उधेड़बुन में थे कि मोहन मैकिंन ब्रेवरीज के मालिक उनके पास आए और दृढ़ विश्चास दिलाया कि अब चिंता की कोई बात नहीं है। सारी स्थिति अब कंट्रोल में है।
उस समय श्री शांता जी ने उनकें मुख से अचानक ऐसे शब्द सुनकर हैरानी वाले लहज़े में पूछा कि सरकार पर से खतरे के बादल कैसे छंट गए। ऐसा क्या करिश्मा हुआ कि बागी विधायक पार्टी में वापिस आने को मान गए। तब सोलन की मोहन मैकिंन ब्रेवरीज के मालिक स्व कपिल मोहन बोले कि उन्होंने सभी विधायकों को 5-5 लाख में खरीद लिया है। अब आप बिलकुल निश्चिंत रहें। आप मुख्यमंत्री बने रहेंगे।
जैसे ही उन्होंने विधायकों के बिकने की बात सुनी तो उनके होश उड़ गए। उनके पांव तले जमीन खिसक गई। उन्होंने कभी ख्वाब में भी ऐसा नहीं सोचा था। उन्होंने कभी यह नहीं सोचा था कि राजनीति का ऐसा घिनोना रूप भी हो सकता है। जनता द्वारा चुने गए माननीयों की भी बोली लग सकती है।
शान्ता जी ने इस सौदेबाजी को ठोकर मार दी। उन्होंने कहा कि वह अपनी कुर्सी बचाने के लिए ऐसी गंदी डील कदापि नहीं करेंगे। विधायकों को नहीं खरीदेंगे भले ही उनकी सरकार गिर जाए, उनकी मुख्यमंत्री श्री कुर्सी चली जाए। अंत तक उन्हीने अपने आदर्शों से कभी समझौता नहीं किया। शाम को गवर्नर के पास जाकर मुख्यमंत्री के पद से त्यागपत्र दे दिया और खुशी-खुशी अपने साथियों सहित सिनेमा देखने चले गए क्योंकि उनके मन पर जो बहुत बड़ा बोझ था वह अब हट चुका था। वह स्वयं की बहुत हल्का महसूस कर रहे थे।
आज के परिदृश्य में यह सब एक सपना सा लगता है। क्या श्री शान्ता कुमार जैसा महान राजनीतिज्ञ भारत की राजनीति को दोबारा मिल पाएगा, शायद नहीं।
तब की और आज की राजनीति में ज़मीन-आसमान का अंतर आ चुका है।
पिछले कुछ दिनों से हिमाचल व अन्य राज्यों की राजनीति में जो कुछ चल रहा है वह किसी से छिपा नहीं है।
राजनीति कलंकित हो चुकी है। एक-दूसरे की कुर्सी को झपटने की होड़ लगी है, चाहे उसके लिए कोई भी कीमत क्यों न आ चुकानी पड़े। साम, दाम, दंड, भेद सब कुछ खुले आम चल रहा है। देश निराश होकर फटी आंखों से सब कुछ देख रहा है। राजनीति इतनी घिनोनी हो जाएगी कभी किसीने सोचा न था।
वर्तमान हालात देख कर शान्ता जी जैसे आदर्शों की राजनीति करने काले लोग हैरान हैं, परेशान हैं। नज़बूरन सब कुछ होता हुआ देख रहे हैं। कुछ कर भी नहीं सकते, चाहते हुए भी।
राजनीति की कालिख मुंह पर पोते हिमाचल जैसा आदर्श राज्य कब यूपी, बिहार बन गया, कुछ पता ही न चला। जहां हर कोई सत्ता का सुख भोगने के लिए किसी भी हद को पार करने को उतारू है।
मुख्यमंत्री की कुर्सी का नंगा नाच देश खुली आँखों से टकटकी लगाए देख रहा है। बड़ी ही शोचनीय व विकट स्थिति से देश-प्रदेश गुज़र रहा है।
हम तो भगवान से यही दुआ करते हैं कि वह श्री शान्ता कुमार जैसे ईमानदार राजनीतिज्ञों को भारत की पावन धरती पर बार-बार भेजें ओर भ्रष्ट राजनेता उनके जीवन से सीख लेकर स्वच्छ राजनीति का अनुसरण करें और भारत में रामराज्य आए।
उन्होंने आदर्शपूर्ण राजनीति के ध्वज को ऊंचा रखने के लिए अपनी सरकार, व मुख्यमंत्री पद दांव पर लगा दिया, त्याग दिया जिसे हथियाने के लिए आज सिर-धड़ की बाज़ी लगी हुई है।
साम, दाम, दंड, भेद सब कुछ धडल्ले से खुलेआम चल रहा है। सत्ता की भूख इस कदर नेताओं के सिर पर हावी हो चुकी है कि मान-मर्यादा, सही-ग़लत, उचित-अनुचित, धर्म-अधर्म का भेद नष्ट हो चुका है। बस किसी भी तरह कुर्सी मिल जाए और पावर और पैसे का खेल शुरू हो जाए जिसके बिना कुछ नेताओं के दिन का चैन और रातों की नींद सब हराम हो गए हैं।
शान्ता जी के आदर्श जीवन की एक और झलकी देखिए। बागी विधायक कपिल मोहन जी द्वारा खरीदे भी जा चुके थे। सरकार बहुमत में आ चुकी थी, उनके मुख्यमंत्री पद की कुर्सी बरकरार थी सब कुछ पहले जैसा हो गया था लेकिन उन्होंने अपने ज़मीर को नहीं बेचा, अपने आदर्शों को नहीं त्यागा और गवर्नर को अपना इस्तीफा सौंप आए। आदर्शों की बलि चढ़ा दी सरकार।
मेरे हिसाब से ऐसा बड़ा करिश्मा ना कभी हुआ और ना ही शायद कभी होगा क्योंकि बेईमानी हमारे खून में बस चुकी है।
आदर्शवाद की राजनीति सत्ता के लालच की भेंट चढ़ चुकी है । उस समय विधायक 5-5 लाख में बिके थे लेकिन अब वक्त काफी बदल गया है। अब महंगाई बहुत बढ़ गई है। सत्ता का लालच भी उतना ही बढ़ गया है ।
अब तो एक विधायक को खरीदने के लिए कम से कम 20-25 करोड रुपए तो चाहिए, जमीर और ईमान की कीमत बहुत ऊंची हो गई है । क्या इसीलिए जनता अपने माननीयों को चुनकर विधानसभा और लोकसभा में भेजती है ताकि वहां जाकर वह अपनी एशपरस्ती कर सकें। हुड़दंग मचा सकें।
आम जनता का भला करना तो गया भाड़ में दिन-रात अपनी ही तरक्की में लगे रहते हैं कुछ राजनेता।
हिंदुस्तान की राजनीति गवाह है कि वह केवल एक शांता कुमार जी ही थे जो न झुके, न बिके और आदर्शवादी राजनीति के ध्वज को फहराए रखा, उसे कदापि झुकने नहीं दिया।
अपने आदर्शों को बचाए रखने के लिए और राजनीति में एक नए युग का सूत्रपात करने के लिए श्री शांता कुमार ने सरकार ही नहीं खोई बल्कि अपने एक हर दिल अजीज दोस्त कपिल मोहन को भी खो दिया जिन्होंने बाद में पार्टी भी बदल ली थी।
यह सारी बातें हमें सुनने में तो बहुत सहज लग रही है लेकिन जब यह सब वास्तव में घटित हुआ होगा तब क्या परिस्थितियों रही होगी यह देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
मेरी परमपिता परमात्मा से यही प्रार्थना है की श्री शांता कुमार जैसे भारत मां के लाल बार-बार इस धरती पर जन्म ले और स्वच्छ और ईमानदार राजनीति का सूत्रपात करें अगर मेरे वश में होता तो मैं श्री शांता कुमार को देश के सर्वोच्च पुरस्कार से सम्मानित करता।
मुझे तो इस बात का डर है कि जिस तरह से देश में पत्रकारिता और राजनीति की जड़े दिनों-दिन खोखली होती जा रही है उनमें दीमक लगता जा रहा है तो भविष्य में क्या होगा। शांता कुमार जैसे ना जाने कितने ही ईमानदार नेताओं की जरूरत है जो मौका परस्ती की राजनीति को छोड़कर स्वच्छ राजनीति के ध्वज को और ऊंचा कर सके।
क्या स्व. अटल बिहारी वाजपेयी और श्री शांता कुमार सरीखे ईमानदार और आदर्शवादी नेता कभी मिल भी पाएंगे या नहीं, यह एक बड़ा सवाल है।
कहीं ये आदर्शवादी युगपुरुष मात्र इतिहास तक ही सिमट कर तो नहीं रह जाएंगे जिनका पूरा जीवन ही परमार्थ हेतु बीता।
पार्टी के नाम में तो हल्का सा बदलाव हुआ है यानि *जनता पार्टी* से *भारतीय जनता पार्टी* लेकिन कुछ नेताओं की मनोस्थिति में जो परिवर्तन हुआ है वह अकथनीय व अशोभनीय प्रतीत होता है। ईश्वर सबको सदबुद्धि दे।
ईश्वर श्री शान्ता जी को स्वस्थ रखें तथा दीर्घायु प्रदान करें।