यूं ही नहीं पाईं बुलन्दियां संतोष-शांता जी ने, एक लंबा संघर्ष, पूर्ण तप है इसके पीछे (IV)

निश्चित मार्ग से कभी पीछे नहीं हटना उनके हठी स्वभाव को और की प्रखर कर देता था

0

यूं ही नहीं पाईं बुलन्दियां संतोष-शांता जी ने

एक लंबा संघर्ष, पूर्ण तप है इसके पीछे

Smt. Santosh Shailza

INDIA REPORTER NEWS
PALAMPUR : Er. SUDARSHAN BHATIA

स्वयं श्री शांता कुमार मानते हैं कि वह अपनी धुन के पक्के थे। भले ही पंडित अमरनाथ जैसे परिपक्व नेता उन्हें बहुत चाहते तथा परिवार को अपने पांवों पर खड़ा करने की सीख देते थे। युवक शांता कुमार सुनते, सिर हिला कर हल्की सी सहमति जतलाते, पर अवसर आने पर अपनी पारिवारिक जरूरतों को अंगूठा दिखाकर, सामाजिक तथा पार्टी के लिए हिमालय की तरह अडिग हो जाते। फिर उनके हितेषी भी दंग रह जाते।

नौकरियां मिल जाना, इनसे त्यागपत्र दे देना, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा लगाकर, अपनी नौकरी का बलिदान कर देना, सत्याग्रहियों में बढ़-चढ़कर इस कांगड़ी किशोर द्वारा अपने निश्चित मार्ग से कभी पीछे नहीं हटना उनके हठी स्वभाव को और की प्रखर कर देता था। इस युवक को पद, यश, मान्यताएं तथा प्रसिद्धि यूं ही नहीं हाथ लगीं। बढ़ते रहे, त्याग करते रहे और व्यक्तिगत हानियों को झेलते हुए राष्ट्रनिष्ठा में कमी कभी नहीं आने दी। शांता कुमार ने घर की कमज़ोर आर्थिक स्थिति की कभी चिंता नहीं की। भले ही थुरल स्कूल से आधी फीस देकर मैट्रिक फ़र्स्ट डिवीज़न में पास की। बाद के वर्षों में रत्न प्रभाकर, बीए प्राईवेट की तथा एलएलबी की और वकील बन गए।

श्री शांता कुमार ने पहली जेल यात्रा मात्र 19 वर्ष की आयु में की 1953 मे।ं तब उनकी कलाई इतनी पतली थी कि जब-तब हथकड़ी से हाथ बाहर निकाल लेते। पुनः खेल-खेल में स्वयं बंदी भी बन जाते।

इस देशभक्त युवक ने अपने लिए नहीं, राष्ट्र के लिए 1953, 1957, 1970, फिर दिल्ली में चौथी गिरफ़्तारी दी। हां, 1975 में विधायक होते हुए भी 29 जून 1975 को पांचवीें गिरफ़्तारी देते हुए अपने दृढ़ कर्तव्य से कभी मुंह नहीं मोड़ा। यह अंतिम पांचवीं गिरफ़्तारी देश में अकस्मात् लगा दी गई एमरजेंसी की देन थी और नाहन जेल में बंदी बना दिए गए।

अपने पुत्र विक्रम के गंभीर बीमार हो जाने पर उन्होंने पैरोल लिया। एक मित्र चाहता था कि यदि वह कागज पर माफी की दो पंक्तियां लिख दें तो वह डॉक्टर परमार से इन्हें जेल से मुक्त करवा देंगे। उन्होंने ही नहीं, उनकी धर्मपत्नी श्रीमती संतोष शैलजा जी ने ऐसी छूट पा लेने से साफ इंकार कर दिया और कहा भी- ‘‘हम जैसे-तैसे अपना यह कठिन तथा यातना भरा समय काट लेंगे, माफी मांगना तो हमारे लिए असंभव है।

श्री शांता कुमार ने सनातन धर्म सभा के अग्रणी नेता, फिर कांग्रेस के विधायक से गहन संबंधों की बात करते हुए कहा, वह मेरे पर बहुत कृपालु थे। हम दोनों की राजनीतिक विचारधारा बिल्कुल भी मेल नहीं खाती थी। हमारे संबंध आदर्श तो थे ही, सिद्धांत के प्रश्न पर दोनों ने कभी समझौता नहीं किया। व्यक्तिगत रूप से मैं उनका बहुत ऋणी रहा हूं परंतु व्यक्तिगत ऋण की बलिवेदी पर मैंने अपने सिद्धांत का कभी बलिदान नहीं किया होगा। जो देखा जाएगा, ऐसा सोच शांता कुमार कंटकमय पथों पर भी डटे रहे।

इस देशभक्त को कभी भी कोई लालच, लोभ, व्यक्तिगत लाभ, पद, प्रतिष्ठा अपने मार्ग से विचलित नहीं कर सके। अपने अभाव भरे कठिन तथा संघर्षपूर्ण जीवन को उन्होंने इस प्रकार भी बयान किया- ‘‘1953 से लेकर 1975 तक 22 वर्षों के लंबे जीवन में मैं पगडंडियों, सपाट सीधे रास्तों पर, ऊंची-नीची पहाड़ियों, धूप-छांव-वर्षां से होता हुआ आगे बढ़ता रहा।

आर्थिक तंगी के बावजूद अपने बलबूते पर अपने भविष्य को बेदाग बनाने में उन्होंने बहुत कष्ट झेले। वकालत की आय नाम मात्र की, प्रेस लगाकर घर चलाना चाहा, आर्थिक तंगी तथा विषमता भरे सवा दो दशकों को कैसे-कैसे झेला, यह उनकी हिम्मत तथा श्रीमती संतोष शैलजा का संबल उन्हें ज़ीरो से हीरो बनाने, समाज में अच्छी छाप छोड़ने, कईं चुनाव जीतने, दो बार मुख्यमंत्री, केंद्र में शक्तिशाली मंत्री, राज्यसभा तथा लोकसभा तक पहुंचने में बस्ती गढ़ जमुला से पंचायत सदस्य से बढ़ते हुए ऊंचे से ऊंचे पदों तक पहुंचने के पीछे उनकी ईमानदारी, कार्य तथा कर्तव्यों के प्रति समर्पण, बड़े-बड़े आर्थिक लाभों को ठुकरा कर, निष्कलंक आगे से आगे बढ़ने में उन्हें उनकी पत्नी तथा परिवार से जो सहयोग मिला उसे वह कभी भुला नहीं पाएंगे।

हृदयविदारक बात यह है कि आज उनका दायां हाथ श्रीमती संतोष शैलजा नहीं हैं। इस क्षति को वह रह-रहकर शब्दों में कह भी देते हैं किंतु आगे बढ़ते रहने का जो उनका संकल्प है वह मजबूती के साथ शांता जी के साथ रहेगा, ऐसा भी स्पष्ट दिखाई दे रहा है। वह अपनी पार्टी के साथ अंत तक जुड़े रहेंगे, भले ही इसके लिए उन्हें कोई बड़े से बड़ा त्याग क्यों न करना पड़े।

पाठकवृंद! बहुत कम लोग जानते हैं कि सर्वशक्तिमान सुनार ने इस दंपत्ति को कितनी बार अग्नि में तपाया, यह फिर भी विचलित नहीं हुए। तभी तो पा सके देश तथा विदेश से सराहनीय तथा सम्मानजनक रुतबा।

Leave A Reply

Your email address will not be published.