सुख-सुविधाओं से अछूता था शांता जी का बचपन (Part-II)
POWERFUL CHIEF MINISTER & UNION MINISTER : SHANTA KUMAR
सुख-सुविधाओं से अछूता था शांता जी का बचपन
INDIA REPORTER NEWS
Er. SUDARSHAN BHATIA
शांताजी ने अपनी तंगहाली को कभी छुपाया नहीं।
कुछ बड़े लोग जब खूब साधन-सम्पन्न हो जाते हैं तो वे अपने बंगले या व्यापारिक संस्थान अथवा सरकार में ऊंचे पद पर आसीन रहते हुए बड़ी-बड़ी डींगंे मारते हैं, कभी दादा की, कभी बाहर खड़ी लम्बी कीमती गाड़ियों की या फिर विदेशों से आयातित मूल्यवान तथा दुर्लभ सामान की खूब सराहना कर, सामने वाले पर अपना खानदानी धनी होने का प्रभाव जमाने में हिचकिचाते नहीं।
वे इतना भी नहीं सोचते कि उनकी वास्तविकता किसी से छिपी नहीं।
शान्ता कुमार जी स्वयं या उनकी अब स्वर्गीय धर्मपत्नी स्वयं को इस स्थिति से सदा बचते हुए कभी-कबार कह देते हैं कि उनका बचपन कष्ट भरा था, जिस समय से उन्होंने खूब सीखा भी।
दो बार रह चुके मुख्यमंत्री, बहुत शक्तिशाली केंद्रीय मंत्री, राज्य सभा तथा लोकसभा में अपनी ओजस्वी वाणी से इतने लोकप्रिय हुए कि यश-मान स्वयं उनके पास पहुंच जाता। उन्हें मनघड़़ंत बातें कह कर अपनी इमेज बनाने से नफ़रत थी और वह सदैव सतर्क भी रहे। पिताजी पोस्टमास्टर के पद् पर रहते हुए अचानक स्वर्ग सिधार गए। वह अपने पीछे एक बड़ा परिवार छोड़ गए।
वैधव्य पा चुकी आदरणीय माता जी का पूरा परिवार उन पर निर्भर था। हाउस वाइफ़ माता ने अपने गांव बस्ती गढ़ जमूला में रहते हुए बच्चों की शिक्षा-दीक्षा तथा लालन-पालन को बड़ी सूझबूझ से पूरा किया।
श्री शांता कुमार का जीवन, बाल्यकाल से लेकर आगे तक एक खुली किताब रहा है। उन्होंने स्वयं अपने पढ़ाई के दिनों का ज़िक्र जिस प्रकार किया उसकी एक बानगी देखिएगा- ‘‘बात तब की है जब मुझे तुरंत स्कूल में दाखिल करवाया गया। स्कूल घर से 5 किलोमीटर की दूरी पर था। यह 10 किलोमीटर की प्रतिदिन की पैदल यात्रा मेरे अपने सपनों का बड़ा साधन थी। मैं सोचता रहता।
अभी-अभी पिता जी के साए में बिताए अच्छे दिनों को याद करता। रविवार को आटा पिसाने के लिए घर से दूर न्युगल खड्ड में लगे घराटों में जाना पड़ता। कभी कुछ साथी साथ होते पर जब अकेला होता तो खूब सोचता व परेशान होता रहता था। पास में ही घना जंगल था। हर छुट्टी के दिन लकड़ियां लाने जंगल जाता। उन लकड़ियों से घर का चूल्हा जलता। जंगल में जाते समय दराट से लकड़ियां काटते समय और फिर सिर पर लकड़ियों का गट्ठर उठाए पहाड़ी रास्ते की ऊंचाई चढ़ते समय सोचता भी और सपने लेता रहता था।’’
यही नहीं, श्री शांता कुमार ने अपने उन बदहाली के दिनों को छुपाया नहीं। यह यामिनी परिसर में बैठे हुए कभी नहीं कहा कि हम तो बहुत ऊंचे या राजघराने से हैं। उन्होंने अपने दो वक्त की रोटी की चिंता को कभी छुपाया नहीं बल्कि खुलकर बयान किया। शांता कुमार जी ने जेल यात्राओं को कभी कोसा नहीं। तब की आर्थिक तंगी पर कभी आंसू नहीं बहाए।
वह इसे ईश्वर की अनुकंपा मानते रहे कि उन्होंने अपने परिश्रम, अपनी ईमानदारी तथा अच्छी सोच के बल पर, राष्ट्रीय सेवक संघ, जनसंघ, जनता पार्टी तथा भारतीय जनता पार्टी के साथ पूरी निष्ठा के साथ काम किया। पत्नी संतोष शैलजा के साथ भी जब-जब छोटा-बड़ा गिला-शिकवा हुआ, उसे भी लिख डाला। कठिनाइयों ने उन्हें महामानव बनाने में बहुत मदद की।