प्रभु भोग का फल हैं। रोज ही भगवान् को निवेदन करके भोजन का भोग लगा करके ही भोजन करें, भोजन अमृत बन जाता है
प्रभु भोग का फल हैं।*
{एक धार्मिक एवं प्रेरणादायक कहानी}
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Contributed by :
SONA SOOD,
Municipal Councillor
एक सेठजी बड़े कंजूस थे।
*एक दिन दुकान पर बेटे को बैठा दिया और बोले कि बिना पैसा लिए किसी को कुछ मत देना, मैं अभी आया।*
अकस्मात एक संत आये जो अलग-अलग जगह से एक समय की भोजन सामग्री लेते थे।
*लड़के से कहा: बेटा जरा नमक दे दो। लड़के ने सन्त को डिब्बा खोल कर एक चम्मच नमक दिया। सेठजी आये तो देखा कि एक डिब्बा खुला पड़ा था।*
सेठजी ने कहा: क्या बेचा बेटा?
*बेटा बोला: एक सन्त, जो तालाब के किनारे रहते हैं, उनको एक चम्मच नमक दिया था।*
*सेठ का माथा ठनका और बोला: अरे मूर्ख! इसमें तो जहरीला पदार्थ है।*
अब सेठजी भाग कर संतजी के पास गए, सन्तजी भगवान् के भोग लगाकर थाली लिए भोजन करने बैठे ही थे कि..
सेठजी दूर से ही बोले: महाराज जी रुकिए, आप जो नमक लाये थे, वो जहरीला पदार्थ था, आप भोजन नहीं करें।
*संतजी बोले: भाई हम तो प्रसाद लेंगे ही, क्योंकि भोग लगा दिया है और भोग लगा भोजन छोड़ नहीं सकते। हाँ, अगर भोग नहीं लगता तो भोजन नही करते और कहते-कहते भोजन शुरू कर दिया।*
सेठजी के होश उड़ गए, वो तो बैठ गए वहीं पर। रात हो गई, सेठजी वहीं सो गए कि कहीं संतजी की तबियत बिगड़ गई तो कम से कम बैद्यजी को दिखा देंगे तो बदनामी से बचेंगे।
*सोचते सोचते उन्हें नींद आ गई। सुबह जल्दी ही सन्त उठ गए और नदी में स्नान करके स्वस्थ दशा में आ रहे हैं।*
*सेठजी ने कहा: महाराज तबियत तो ठीक है।*
सन्त बोले: भगवान की कृपा है! इतना कह कर मन्दिर खोला तो देखते हैं कि भगवान् के श्री विग्रह के दो भाग हो गए हैं और शरीर काला पड़ गया है।
*अब तो सेठजी सारा मामला समझ गए कि अटल विश्वास से भगवान ने भोजन का ज़हर भोग के रूप में स्वयं ने ग्रहण कर लिया और भक्त को प्रसाद का ग्रहण कराया।*
सेठजी ने घर आकर बेटे को घर दुकान सम्भला दी और स्वयं भक्ति करने सन्त शरण में चले गए!
*इसलिए रोज ही भगवान् को निवेदन करके भोजन का भोग लगा करके ही भोजन करें, भोजन अमृत बन जाता है। अत: आज से ही यह नियम लें कि भोजन बिना भोग लगाएं नहीं करेंगे..!!*