St. Paul’s School प्रिंसीपल वीरेन्द्र प्रताप सिंह ने किया कमाल 36 लाख वसूल कर मेनेजमैंट में बनाया विषेश स्थान

St Paul's School PALAMPUR UNDER SCANNING

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इंडिया रिपोर्टर टुडे

पालमपुर: राजेश सूर्यांश प्रथम

पालमपुर के प्रख्यात् निजी स्कूल सेंट पाॅलज़ स्कूल के प्रिंसीपल रेव। वीरेंद्र प्रताप सिंह ने कोरोना काल में भी ऐसा कमाल कर दिखाया है, जिससे सभी स्कूलों के प्रिंसीपल अनंत व है रान हो रहे हैं। हर जगह उनकी काबिलियत की चर्चा की जा रही है। वह सभी स्कूलों के लिए एक प्रेरणास्रोत बन कर उभरे हैं।

  1. सर्वविदित है कि कोरोना महामारी के चलते सभी निजी स्कूलों को छात्रों के अभिभावकों से फ़ीस वसूलना एक टेढ़ी खीर बन गई है। उनके चेहरे पर परेषानी स्पश्ट देखा जा सकता है। इस महामारी के दौरान कई स्कूलों का तो हाल बेहाल हो गया है। स्टाफ़ को सेलरी देना अत्यधिक कठिन हो गया है। उन्हें इस समस्या से बाहर निकलने का कोई दूसरा रास्ता नहीं सूझ रहा है।
    बहुत सोच-विचार करके, अपनी एॅडमिनिस्ट्रेटिव स्किल्ज़् का परिचय देते हुए क्षेत्र के सबसे पुराने और प्रख्यात् स्कूल जोकि अपनी स्थापना के 97 वें वर्श में है, के प्रिंसीपल श्री वीरेन्द्र प्रताप सिंह बच्चों से फ़ीस उगाहने का एक ऐसा नायाब तरीका खोज निकाला जिसे सुनकर आप सुनकर प्रिंसीपल की प्रषंसा किए बिना नहीं रहे।
    उनकी योजना के अनुसार सभी बच्चों के अभिभावकों को महिलाओंवादी भेज दिए गए कि वे स्कूल में आकर अपने प्यारे बच्चों का रिजल्ट ले जाएं। महिलाओं को मिलते हैं सभी अभिभावक दौड़े-दौड़े पहुंच गए स्कूल के कार्यालय में रिअल्ट लेने। जैसे ही वे स्कूल में पहुंचे तो उन्होंने कहा कि आपका इतने महीने की फ़ीस बकाया है। फटाफट नीचे काउंटर पर जाईए, फ़ीस जमा करवाईए और रसीद दिखा कर अपने बच्चों को रिवल्ट ले जायेंगे। अभिभावक भी बेचारे ‘मरते क्या न करते’ जैसे-तैसे यहाँ-वहाँ से पैसे इकट्ठा करके बच्चों की पूरी फ़ीस भर कर रिपोर्ट कार्ड लेकर चलते बने। लगभग 1500 बच्चों में से 40-50 बच्चे ही बचे होंगे और बाकी सबसे अधिक फ़ीस वसूलने में स्कूल प्रबंधित हो गए हैं।
    बाद में जब गिनती की गई तो लगभग 36 लाख की भारी-भरकम वसूली देखकर स्कूल के प्रिंसीपल श्री वीरेन्द्र प्रताप सिंह जी पार्श्वगद हो गए और अपनी योजना की सफलता पर इतराने लगे। उनकी ख़शी का ठिकाना नहीं रहा। सम्भव है कि कोरोनाकाल में भी सुनियोजित तरीके से फ़ीस वसुलने में उन्होंने जो अपनी काबिलियत दिखाई और स्कूल की स्थिति को उबर वह काबिलेतारीफ़ है। निस्संदेह उनकी इस काबिलियत की स्कूल प्रबंधकारिणी भी क़लाल हो गई होगी। जब उन्होंने देखा कि सीधी उंगली से तो घी ढंग से निकल नहीं रहे इसलिए उन्होंने उंगली टेढ़ी करने में ही समझदारी समझी। परिणामस्वरूप अभिभावक अचानक ठगे से रह गए।

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