कहानी बड़ी सुहानी : पत्थर की कीमत

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*कहानी बड़ी सुहानी*

(1) *कहानी*

*पत्थर की कीमत*

एक हीरा व्यापारी था जो हीरे का बहुत बड़ा विशेषज्ञ माना जाता था, किन्तु गंभीर बीमारी के चलते अल्प आयु में ही उसकी मृत्यु हो गयी। अपने पीछे वह अपनी पत्नी और बेटा छोड़ गया। जब बेटा बड़ा हुआ तो उसकी माँ ने कहा-

“बेटा, मरने से पहले तुम्हारे पिताजी ये पत्थर छोड़ गए थे, तुम इसे लेकर बाज़ार जाओ और इसकी कीमत का पता लगा, ध्यान रहे कि तुम्हे केवल कीमत पता करनी है, इसे बेचना नहीं है।”

युवक पत्थर लेकर निकला, सबसे पहले उसे एक सब्जी बेचने वाली महिला मिली।” अम्मा, तुम इस पत्थर के बदले मुझे क्या दे सकती हो ?”, युवक ने पूछा।

“देना ही है तो दो गाजरों के बदले मुझे ये दे दो… तौलने के काम आएगा।” सब्जी वाली बोली।

युवक आगे बढ़ गया। इस बार वो एक दुकानदार के पास गया और उससे पत्थर की कीमत जानना चाही। दुकानदार बोला-

“इसके बदले मैं अधिक से अधिक 500 रूपये दे सकता हूँ… देना हो तो दो नहीं तो आगे बढ़ जाओ।”

युवक इस बार एक सुनार के पास गया। सुनार ने पत्थर के बदले 20 हज़ार देने की बात की। फिर वह हीरे की एक प्रतिष्ठित दुकान पर गया वहां उसे पत्थर के बदले 1 लाख रूपये का प्रस्ताव मिला और अंत में युवक शहर के सबसे बड़े हीरा विशेषज्ञ के पास पहुंचा और बोला-

“श्रीमान, कृपया इस पत्थर की कीमत बताने का कष्ट करें।”

विशेषज्ञ ने ध्यान से पत्थर का निरीक्षण किया और आश्चर्य से युवक की तरफ देखते हुए बोला-

“यह तो एक अमूल्य हीरा है, करोड़ों रूपये देकर भी ऐसा हीरा मिलना मुश्किल है।”

………

मित्रों, यदि हम गहराई से सोचें तो ऐसा ही मूल्यवान हमारा मानव जीवन भी है। यह अलग बात है कि हममें से बहुत से लोग इसकी कीमत नहीं जानते और सब्जी बेचने वाली महिला की तरह इसे मामूली समझा तुच्छ कामो में लगा देते हैं।

आइये हम प्रार्थना करें कि ईश्वर हमें इस मूल्यवान जीवन को समझने की सद्बुद्धि दे और हम हीरे के विशेषज्ञ की तरह इस जीवन का मूल्य आंक सकें।

*सकारात्मक रहे..सकारात्मक जिए.. इस संसार मे सबसे बड़ी सम्पति बुद्धि..सबसे अच्छा हथियार धैर्य है..सबसे बढ़िया दवा हँसी है..और आश्चर्य की बात है कि ये सब निशुल्क है..सोच बदलो जिंदगी बदल जाएगी*

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(2) *कहानी*

*सत्य का साथ ना छोङें*

एक सेठ था। वह बर्तनों को किराये पर देता था और उनसे कमाई करता था। एक बार किसी को किराये पर बर्तन दिये।

वह इन्सान उससे बर्तन ले गया और किराया दे गया। लेकिन जब उसने बर्तन वापस लौटाये तो दो-तीन बर्तन उसे फालतू दे दिये। वह सेठ पूछने लगा कि क्या बात है? तुमने ज्यादा बर्तन क्यों दिये हैं? वह आदमी कहने लगा कि आपने जो बर्तन दिये थे, ये बर्तन उसकी सन्तानें है ।

इसलिए इन्हें भी आप सम्भाल लीजिए। वह सेठ बड़ा खुश हुआ कि यह अच्छा ग्राहक है। यह तो मुझे बहुत फायदा देगा। किराया तो मुझे मिलेगा ही, साथ में फालतू बर्तन भी मिलेंगे।

इस तरह चन्द दिन बीते, वही आदमी फिर आ गया। लौटते समय फिर थोड़े बर्तन ज्यादा कर दिये और वही बात कही कि बर्तनों की सन्तान हुई है। सेठ बड़ा खुश हुआ, चुपचाप सब बर्तन रख लिए।

एक महीने का समय डालकर वह आदमी सेठ के पास फिर गया और कहने लगा कि मेरे यहां कुछ खास मेहमान आने वाले हैं, अतः कृपा करके आपके पास जो चांदी के बर्तन हैं, वे मुझे दे दीजिए।

पहले तो सेठ कुछ सोच में पड़ा, फिर सोचा कि मैंने पहले जितने बर्तन दिए, उनसे ज्यादा मुझे हासिल हुए। इस बार कुछ चांदी के बर्तन ज्यादा मिलेंगे।

इसी तरह सोचकर उसने बर्तन दे दिये। समय बीतता गया, पर वह आदमी बर्तन लौटाने नहीं आया। अब सेठ बड़ा परेशान हुआ। वह उसके घर जा पहुंचा और उससे पूछा कि भले मानस!

तूने वे बर्तन वापस नहीं किए। वह आदमी बहुत ही मायूस सा होकर कहने लगा कि सेठ जी, क्या करें, आपने जो चांदी के बर्तन दिए थे, उनकी तो मौत हो गई।

सेठ बड़ा गुस्से में आया, कहने लगा कि क्या बात है, मैं तुझे अन्दर करवा दूंगा, कभी बर्तनों की भी मौत होती है। वह आदमी कहने लगा “सेठ जी!

जब मैंने कहा था कि बर्तनों की संतानें हो रही हैं, उस वक्त आप सब ठीक मान रहे थे। यदि बर्तनों की सन्तान हो सकती है तो वे मर क्यों नहीं सकते?”

इसी तरह संसार की हालत है। माया के पीछे इन्सान इतना अन्धा हो जाता है कि उसे कुछ समझ नहीं आता।

भक्तजन हर कदम पर इन्सान को चेतावनी देते हैं कि हे इन्सान! तू जिन महात्माओं के, जिन सन्तजनों के वचनों को सुनता है, पढ़ता है, तू इनके ऊपर सत्य को जानकर दृढ़ भी हो जा ।
*लालच में पड़कर सत्य का साथ न छोड़, नहीं तो बाद में पछताना पड़ेगा।*

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(3) *कहानी*

**हृदय की इच्छाएं शांत नहीं होती हैं। क्यों???*

*एक राजमहल के द्वार पर बड़ी भीड़ लगी थी।*
*किसी फकीर ने सम्राट से भिक्षा मांगी थी। सम्राट ने उससे कहा,”जो भी चाहते हो, मांग लो।”*
*दिवस के प्रथम याचक की कोई भी इच्छा पूरी करने का उसका नियम था।*

*उस फकीर ने अपने छोटे से भिक्षापात्र को आगे बढ़ाया और कहा,”बस इसे स्वर्ण मुद्राओं से भर दें।”सम्राट ने सोचा इससे सरल बात और क्या हो सकती है! लेकिन जब उस भिक्षा पात्र में स्वर्ण मुद्राएं डाली गई, तो ज्ञात हुआ कि उसे भरना असंभव था।*

*वह तो जादुई था। जितनी अधिक मुद्राएं उसमें डाली गई, वह उतना ही अधिक खाली होता गया!*
*सम्राट को दुखी देख वह फकीर बोला,”न भर सकें तो वैसा कह दें। मैं खाली पात्र को ही लेकर चला जाऊंगा!*
*ज्यादा से ज्यादा इतना ही होगा कि लोग कहेंगे कि सम्राट अपना वचन पूरा नहीं कर सके !*

*”सम्राट ने अपना सारा खजाना खाली कर दिया, उसके पास जो कुछ भी था, सभी उस पात्र में डाल दिया गया, लेकिन अद्भुत पात्र न भरा, सो न भरा।*
*तब उस सम्राट ने पूछा,”भिक्षु, तुम्हारा पात्र साधारण नहीं है। उसे भरना मेरी सामर्थ्य से बाहर है। क्या मैं पूछ सकता हूं कि इस अद्भुत पात्र का रहस्य क्या है?”*

*वह फकीर हंसने लगा और बोला,”कोई विशेष रहस्य नहीं। यह पात्र मनुष्य के हृदय से बनाया गया है।*
*क्या आपको ज्ञात नहीं है कि मनुष्य का हृदय कभी भी भरा नहीं जा सकता*?
*धन से, पद से, ज्ञान से- किसी से भी भरो, वह खाली ही रहेगा, क्योंकि इन चीजों से भरने के लिए वह बना ही नहीं है। इस सत्य को न जानने के कारण ही मनुष्य जितना पाता है, उतना ही दरिद्र होता जाता है।*

*हृदय की इच्छाएं कुछ भी पाकर शांत नहीं होती हैं। क्यों?*
*क्योंकि, हृदय तो परमात्मा को पाने के लिए बना है।”*
*शांति चाहिए ? संतृप्ति चाहिए ? तो अपने संकल्प को कहिए कि “भगवान श्रीकृष्ण” के सेवा के अतिरिक्त और मुझे कुछ भी नहीं चाहिए।*

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(4) *कहानी


*लालच का फल*

हल्द्वानी एक छोटा सा शहर था। उसी शहर में गणेश मिठाईवाले की एक बड़ी प्रसिद्ध दुकान थी । वह बहुत ही स्वादिष्ट बाल मिठाई बनाया करता था। धीरे-धीरे गणेश मिठाईवाले की कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई। अधिकतर लोग गणेश की दुकान से मिठाइयां खरीदने लगे ।आमदनी बढ़ते ही मिठाई वाले का दिमाग सातवें आसमान में पहुंच गया। ज्यादा मुनाफा पाने के चक्कर में अब वह नापतोल में भी गड़बड़ करने लगा । एक दिन एक चतुर ग्राहक उसकी दुकान पर आया। उसने मिठाई वाले से मिठाई मांगीं। गणेश मिठाई तोलते वक्त उसमें भी हाथ की सफाई दिखाने लगा। लेकिन ग्राहक चतुर था।

उसने तुरंत बोला “जरा ठीक से तोलो भाई। मिठाई की तोल में गड़बड़ी दिखाई देती है”। गणेश बोला “सेठजी चिंता की क्या बात है।अगर तोल में थोड़ा गड़बड़ भी हो गई तो कोई बात नहीं, आपको थोड़ा वजन कम उठाना पड़ेगा। जिससे आपको तकलीफ भी कम होगी”। गणेश की बात सुनकर ग्राहक ने उसकी अक्ल ठिकाने लगाने का निश्चय किया। उसने गणेश से मिठाई का डिब्बा ले लिया ।लेकिन रुपए देते वक्त उसने दाम से कुछ कम रुपए गणेश के हाथ में थमा दिए ।

गणेश ने उन रुपयों को गिना तो उसने पाया कि रुपए मिठाई के दाम से कुछ कम है। उसने ग्राहक की तरफ देखा । इस पर ग्राहक ने गणेश से कहा “हां , मैंने जानबूझकर तुमको रुपए कुछ कम दिए हैं ताकि तुम्हें रुपए गिनने में कम परेशानी हो। जिस तरह तुमने मेरा भला सोचा कि मुझे मिठाई के डिब्बे का वजन उठाने में कम तकलीफ हो।उसी तरह मैंने भी तुम्हारी तकलीफ को कुछ कम करने का सोचा ।इसीलिए पैसे कम दिए”।

यह कह कर ग्राहक जोर-जोर से हंसने लगा।उस वक्त तक वहां पर कई लोग जमा हो गए। तब ग्राहक ने लोगों को सारी घटना सुनाई। घटना सुनते ही वहां पर उपस्थित सभी लोग जोर जोर से हंसने लगे। लेकिन मिठाई वाले को तो काटो तो खून नहीं ।उसे अपने ही चालाकी भारी पड़ गई । लेकिन ग्राहक वहां से मुस्कुराता हुआ चला गया।इसके बाद कभी भी गणेश ने मिठाई की तोल में गड़बड़ ना करने का फैसला कर लिया।

*Moral Of The Story*

लालच का फल हमेशा ही बुरा होता हैं। इसीलिए हमें सदैव लालच से बचना चाहिए।

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(5) *कहानी*

*!! प्रेम और वसंत !!*

एक आदमी था। वह जीवन से बड़ा निराश हो गया था। हर घड़ी उदास रहता था, उसे लगता था कि वह दुनिया में अकेला है। उसे कोई प्यार नहीं करता।

वसंत का मौसम आया……

तरह-तरह के फूल खिल उठे। उनकी महक से चारों ओर आनंद छा गया, लेकिन वह आदमी अपने कमरे में ही बंद रहा।

एक दिन अचानक एक लड़की उसके कमरे के किवाड़ खोलकर अंदर आई। उस आदमी को गुमसुम देखकर सहम उठी।

बोली……”आप इतने उदास क्यों हैं?”

आदमी ने कहा….
“मुझे कोई प्यार नहीं करता। मैं इस दुनिया में अकेला हूं।”

लड़की ने कहा….
“यह तो बड़ी बुरी बात है कि आपको कोई प्यार नहीं करता पर यह बताइए कि आप किस-किसको प्यार करते हो?”

आदमी ने कोई जवाब नहीं दिया।

लड़की बोली….
“आप बाहर आइए। देखिए आपके दरवाजे पर कितना प्यार बिखरा पड़ा है। आप चाहें तो भर-भर हाथों बटोर सकते हैं।”

इतना कहकर उस लड़की ने उस आदमी का हाथ पकड़ा और उसे कमरे के बाहर लाकर हंसते-हंसते फूलों के बीच खड़ा कर दिया।

वह बोली….
“आप प्यार चाहते हैं। लीजिए, जितना चाहिए, इनसे ले लीजिए। देखिए, ये कितने बढ़िया साथी हैं। खुशी-खुशी प्यार देते हैं, पर बदला नहीं चाहते। क्यों है न?”

इन शब्दों को सुनकर उस आदमी का जैसे नया जन्म हो गया।

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