प्रख्यात लेखिका श्रीमती सुरेश लता अवस्थी की बेबाक रचना “लोकतंत्र में राजनीति”

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सुरेश लता अवस्थी, चौकी खलेट, पालमपुर।

लोकतंत्र में राजनीति
लोकतंत्र में राजनीति की अजब ही बात है
कुर्सी और स्वार्थ का गजब का साथ है।
रिश्ते नाते सगे सम्बन्धी सब बेमानी हैं
इस राजनीति के मारे नही मांगते पानी हैं।
यहॉं कुर्सी के लिए बाप बेटे का दुश्मन है
बेटा बाप से लड़ता है न लोकलाज न शर्म है।
ना रिश्तों का एहसास है ना समाज की परवाह
अलग हैं सब के रास्ते और अलग अलग ही चाह।

मुलायम बिछौने पर नींद नही आती है
जब कुर्सी छिनने की बारी आती है।
लाड़ से पाला बेटा दुश्मन हो जाता है
बाप को छठी का दूध याद दिलाता है।
भाई भाई की जान ले लेता है
पैसे के लिए ईमान बेच देता है।
माँ की ममता भी सरेआम बाजार में बिकती है
लाज शर्म भी चौराहे पर बेबस सी दिखती है।
बेटा बाप की इज्जत को सरेआम बेच रहा है
बाप बेटे को भरे बाजार में घसीट रहा है।
दो जानी दुश्मन कुर्सी के लिए दोस्त हो जाते हैं
जो बात नही करते थे गलबंहियाँ डाले आते हैं।
वाह री राजनीति देख लिए तेरे खेल निराले
सच्चे सुच्चे हर गए बस जीते पैसे वाले।
पर याद रखो दुनिया वालो ये वक्त का फेर है
ऊपर वाले के घर अंधेर नहीं है पर देर है।
कब क्या होगा ये कोई भी समझ नही पाता
वरना कल का हीरो आज सलाखों के पीछे क्यों जाता।

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