सुरेश लता अवस्थी,
चौकी खलेट, पालमपुर।
कौतूहल
बैठे थे वे दोनों बैंच पर,
इक दूजे से सट कर मिलकर।
लगते थे कुछ घबराए से,
यहॉं वहाँ नजरें थी हऱ पल।
कौतूहल बढ़ा मेरे मन में,
बूढ़े अम्मा बाबा को देख कर।
अपनी जिज्ञासा को मिटाने,
बैठ गई मैं साथ बैंच पर।
बातों ही बातों में जाना,
बेटा उनको वहाँ बिठा कर।
चला गया था लाने गाड़ी,
उसकी राह देख रहें थे अब तक़।
जिज्ञासा वश मैंने बोला था,
अपने बेटे का पता बता दो।
पहुंचा दूँगी तुम्हें वहाँ पर
थोड़ी सी पहचान बता दो।
अनपढ़ थे दोनों बेचारे,
दोनों ही बिलकुल अनजान।
और नही था उनका कोई,
ना ही थी कोई पहचान।
समझ गई मैं सारी कहानी,
उनको उनके घर पहुँचाया।
जो भी अच्छा हो सकता था,
उनका वह सब कुछ करवाया।
मेरी एक बहन की जुबानी,
ये है सच्ची एक कहानी।
मानो तो गंगा भी माँ है,
ना मानो तो बहता पानी।।
सुरेश लता अवस्थी