प्रख्यात लेखिका श्रीमती सुरेश लता अवस्थी की भावनात्मक रचना “आँगन का पेड़”

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SURESH LATA AWASTHI,

Chowki Khalet PALAMPUR

Mob : 82787 39443

आंगन का पेड़

मेरे आँगन में खड़ा,
आम का पेड़,
रोज़ देखती हूँ उसे,
कैसे खड़ा है सिर उठाए,
नहीं डरता किसी से,
न आँधी से न तूफान से।

चाहती हू मैं, इस की तरह बनू,
सदा खड़ी रहूँ अविचलित
धूप में, छांव में, वर्षा में तूफान में।

पर मैं तो डरपोक हूं,
कांपने लगती हूं वर्षा में भीग कर,
जान निकल जाती है तूफान को देख कर।

मैं देखती हूँ यह आम का पेड़,
इतना बहादुर, इतना कठोर,
पर जब आम लगते हैं,
तो हो जाता है कितना शान्त,
पत्थरों की मार सहकर भी,
रहता है चुपचाप।
लोग ऊपर चढ़ कर आम तोड़ते हैं,
शाखा शाखा मरोड़ते हैं,
खड़ा रहता है शान्त चुपचाप।

कभी क्रोध नहीं करता है,
बस देना ही जानता है,
सोचती हूं तो भर जाती हूँ ग्लानि से,
कभी हम इन्सान भी ऐसा नहीं बन सकते,
बदला बुराई का भलाई नहीं दे सकते।

मैं बैठ जाती हूं पेड़ के पास,
जुड़ जाते हैं प्रार्थना के लिए दोनों हाथ,
मुझे भी दे दे अपना एक गुण,
बना दे मुझे अपनी तरह निडर,सहनशील और शांत।

तूफानों में खड़ी रहूँ निर्भीक,
बिना कुछ बोले सह जाऊँ सब चुपचाप,
न हो गिला, न शिकवा, न शिकायत,
दे दे मुझे अपनी यह आदत।

बना दे मुझे भी अपनी तरह फरिश्ता,
और जब मौत का दूत आए,
तो शान्ति से लता की सांस,
इस तन से निकल जाए।।

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