उठो मुर्दो, नामर्दो! कुछ तो शर्म करो…अब तो जागो…कब तक चुपचाप देखते रहोगे..मुझे दुःख है…
नमन मंच
विधा : कविता
विषय : मैं मुर्दों के शहर में रहती हूॅं
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यह बात कोई मिथ्या न माने,
मैं सबकुछ सच-सच कहती हूॅं।
ज़िंदा हूॅं, शर्मिंदा हूॅं कि मैं मुर्दों के शहर में रहती हूॅं।
लाज लूट ले कोई वहशी,
देख…
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