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डॉ सत्येन्द्र शर्मा का “यह कैसा सावन आया”

सावन कैसा आया सावन कैसा आया भाई , यह कैसा सावन आया । दैत्य झूमते हैँ मस्ती में, यमदूतों का है साया । झूले कहां बहे बाढ़ों मेें, क्या शहरों क्या गांवों में । सड़कें कहां धुल गयीं अब सब , लोग तैरते नावों में ।। भाग रहे हैँ तैर रहे…
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छोटी सी जिंदगी है ; हंस कर जीना सीखिए, छोड़ो गिले शिकवे ,कड़वे घूंट पीना सीखिए।

छोटी सी जिंदगी है ; हंस कर जीना सीखिए, छोड़ो गिले शिकवे ,कड़वे घूंट पीना सीखिए। हो सके तो बस ;इतनी सी मदद कर देना , कोई गिरा मिले ,उठा कर खड़ा कर देना। कब कौन और कहां पर ;पराधीन हो जाए, दुआ कर देना वहां, कोई और न हो जाए। बस दो…
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तेरी बहन आई है….Col. Jaswant Singh Chandel

तेरी बहन आई है ________________ तेरी बहन आई है, तेरे घर में आई है, आज रक्षाबंधन है, तुझे राखी लाई है। तुम तो सरहदों से, नहीं लौटे हो, उसने --------- सिसकियां ही भरी, और तेरी तस्वीर पर, राखी चढ़ा दी है। मुहब्बत की दुहाई ,…
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छाले

छाले मैं तो भाई अपनी मर्जी का ही फकीर हूं, अपने दिल पर पड़े छालों की लकीर हूं, गम देने वाले गम देते गए हम सहते रहे क्यों दोष देता फिरूंअपनी भी जमीर है। छोड़ कर चले गए वे तो बस चले ही गए, हम तड़पे जरूर मगर होशोहवास में रहे, गम देने…
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“मुझ से कभी पूछ तो लिया होता…!” Colonel Jaswant Singh Chandel

बवाल ******** बिना किसी गवाह कचेहरी ब्यान कर दिया, सब यह कह रहे हैं अपने कमाल कर दिया, मुझ से कभी पूछ तो लिया होता, बेवजह आपने एक बवाल खड़ा कर दिया। अनजाने में ही प्यार का इजहार कर दिया, मैं ख़ामोश रहा और तूने कमाल कर दिया,…
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उठो मुर्दो, नामर्दो! कुछ तो शर्म करो…अब तो जागो…कब तक चुपचाप देखते रहोगे..मुझे दुःख है…

नमन मंच विधा : कविता विषय : मैं मुर्दों के शहर में रहती हूॅं ********(((***((((******* यह बात कोई मिथ्या न माने, मैं सबकुछ सच-सच कहती हूॅं। ज़िंदा हूॅं, शर्मिंदा हूॅं कि मैं मुर्दों के शहर में रहती हूॅं। लाज लूट ले कोई वहशी, देख…
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ठोकरें खाते -खाते तो यहां तक पहुचां हूं,….

ठोकरें ****** ठोकरें खाते -खाते तो यहां तक पहुचां हूं, वरना उमर भर रास्ते ही तलाशता रहता। कभी कंकड़-पत्थर तो कभी कांटेभी मिले, बेपरवाह चलता रहा नहीं तो हटाता रहता। कभी बिच्छू सांप और कभी सपोले भी मिले, हटानें में कामयाब नहीं ज़हर…
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वो ढलता पिछला जमाना जाते देख रखा है मैंने,….कर्नल जसवन्त सिंह चन्देल

दातों की जटिल से जटिल समस्याओं का दर्द रहित उपचार केवल पालमपुर में विश्व स्तरीय अत्याधुनिक उपकरणों द्वारा तड़प..... ढलता पिछला जमाना जाते देख रखा है मैंने, बाप कोअंगोछा पहनें कमाते देख रखा है मैंने , मां को कहां रहती थी दिन-रात…
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प्रख्यात कवयित्री श्रीमती कमलेश सूद द्वारा रचित ‘ हिंदी भाषा’

हिंदी भाषा कमलेश सूद पालमपुर 176061 हिमाचल प्रदेश संपर्क ः 9418835456 कवि, लेखक कुछ साहित्यकार प्रयत्नशील हैं करने को सत्यापित राष्ट्र भाषा को अपने ही देश में, अपनी ही भाषा को दिन-रात एक जुट हो खड़े हैं विडंबना है कैसी…
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बचपन याद आ गया… जब घड़ी पापा के पास होती थी और वक्त हमारे पास…अब कभी नहीं लौटेंगे वो…

बचपन याद आ गया... अपनी पुश्तैनी हवेली की, स्लेटपोश छत पर, बरसात की बूंदों की आवाजें, टप-टप छण -छण घुंघरुओं , की छणक सी आवाजें, सुनी तो बचपन याद आ गया।। नीले पत्थरों से सजे-धजे, आंगन की यादें, जहां घुटनों के बल रेंगना,…
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