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thokaren

ठोकरें खाते -खाते तो यहां तक पहुचां हूं,….

ठोकरें ****** ठोकरें खाते -खाते तो यहां तक पहुचां हूं, वरना उमर भर रास्ते ही तलाशता रहता। कभी कंकड़-पत्थर तो कभी कांटेभी मिले, बेपरवाह चलता रहा नहीं तो हटाता रहता। कभी बिच्छू सांप और कभी सपोले भी मिले, हटानें में कामयाब नहीं ज़हर…
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