ठोकरें खाते -खाते तो यहां तक पहुचां हूं,….
ठोकरें
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ठोकरें खाते -खाते तो यहां तक पहुचां हूं,
वरना उमर भर रास्ते ही तलाशता रहता।
कभी कंकड़-पत्थर तो कभी कांटेभी मिले,
बेपरवाह चलता रहा नहीं तो हटाता रहता।
कभी बिच्छू सांप और कभी सपोले भी मिले,
हटानें में कामयाब नहीं ज़हर…
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