टी बी (TUBERCULOSIS) उन्मूलन के जन आन्दोलन में सभी की भूमिका महत्वपूर्ण – सी एम ओ, काँगड़ा

आयुष्मान भारत हेल्थ वैलनेस सेंटर के मध्यम से सुविधाएँ लोगों तक सुलभ करने में सी एच औ भी करेंगी योगदान

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RAJESH SURYAVANSHI
Editor-in-Chief, 9418130904
HR MEDIA GROUP

हम लोग आज चांद पर पहुंच गए हैं पर फिर भी अनेक लोग ऐसी बीमारी से मर रहे हैं जिसका ईलाज सम्भव है –

मैं बात कर रहा हूं टीबी (TUBERCULOSIS) की जिससे दुनिया में हर साल लगभग एक करोड़ लोग इस बीमारी की चपेट में आते हैं जिसमें दुर्भाग्य से एक-चौथाई हमारे देश भारत में ही हैं।

गहन चिंता की बात यह है कि दुनिया में होने वाली टीबी के रोगियों की मृत्यु एक-तिहाई मात्र भारत में ही होती है।

हमें इसे रोकना है, जीवन को बचाना है – विश्व स्वास्थ्य संगठन ने लक्ष्य रखा है कि 2030 तक हम टीबी का उन्मूलन करें, वहीं भारत सरकार ने इसके लिए 2025 का लक्ष्य रखा है।

इसी श्रृंखला में एक राष्ट्रीय योजना बनी है जिसमें कि मरीजों को खोजना, उनका सही प्रकार से इलाज, टीबी की रोकथाम व स्वास्थ्य व्यवस्थाओं का निर्माण अहम है।जिला कांगड़ा में भी इन्हीं बिंदुओं पर एक रणनीतिक योजना बनाई गई है और भरसक प्रयास जारी हैं कि हम इस अभियान को एक जन आंदोलन के रूप में आगे बढ़ाएं।

जिलाधीश की अध्यक्षता में जिला क्षय रोग समिति की बैठक आयोजित की जाती है जिसमें कार्यक्रम की समीक्षा की जाती है व आगे की रणनीति पर विस्तृत चर्चा की जाती है।

हिमाचल प्रदेश स्वास्थ्य में अग्रणी प्रदेश है। पिछले 3 सालों से हिमाचल राष्ट्रीय स्तर पर टीबी उन्मूलन में प्रथम स्थान पर आ गया है, वहीं जिला कांगड़ा में टीबी रोकने के प्रयासों के लिए पिछले वर्ष कांस्य मेडल व इस वर्ष रजत पदक दिया गया लेकिन अभी भी बहुत सी चुनौतियां बाकी हैं।


24 मार्च को विश्व टीबी दिवस मनाया जाता है – इस बार सभी हेल्थ वैलनेस सेंटर (HEALTH WELLNESS CENTRES) में यह व्यापक तौर पर मनाया गया जिसमें  पदयात्रा, विभिन्न प्रतियोगिताएं, भजन, जागरण के लिए शपथ अभियान चलाया गया।


जिला कांगड़ा में 250 हेल्थ एंड वैलनेस सेंटर (HEALTH AND WELLNESS CENTRES) कार्यरत हैं जिन्होंने ग्रामीण स्तर पर टीवी की खोज के लिए प्रयास किए व 17 नए मरीज सामने आए।


सोशल मीडिया पर भी ट्विटर पर विशेष अभियान चलाया गया। इसमें देखा गया कि अधिकतर युवा सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं और उन तक स्वास्थ्य के संदेश पहुंचाने के लिए सभी ने मिलकर सार्थक प्रयास किया और टीबी मुक्त भारत जन आंदोलन को सोशल मीडिया के माध्यम से भी आगे लाने के लिए सभी वर्गों की भूमिका के साथ जिला में प्रयास किए जा रहे हैं।


इसमें टीबी चैंपियन यानि वो लोग जो टीबी रोग से ठीक हो चुके हैं उनकी भी अहम भूमिका रहती है – चैंपियन इस बीमारी से जुड़े भेदभाव को कम करने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।


साथ ही बहुत जरूरी है कि टीबी के जो मरीज है वे समय पर नियमित रूप से अपनी दवाई खाएं । इसके लिए टेक्नोलॉजी द्वारा बहुत ही सरल तरीके आ गए हैं जहां 99 Dots के माध्यम से मरीज की दवाई का लेखा-जोखा एक मिस्ड कॉल के माध्यम से रखा जा सकता है वहीं बिगड़ी टीबी के मरीजों का मर्म बॉक्स या डिजिटल मील बॉक्स के माध्यम से रखा जा सकता है। बिगड़ी हुई टीबी की जांच के लिए इलाज के लिए सुविधाएं सुदृढ़ की जा रही हैं।

मुख्य चिकित्सा अधिकारी जिला कांगड़ा डॉक्टर गुरदर्शन गुप्ता ने बताया कि टीबी के मरीजों को पोषण के लिए ₹500 प्रतिमाह दिए जाते हैं – इसके अतिरिक्त जिन मरीजों को बिगड़ी हुई टीबी यानि एमडीआर टीबी होती है उन्हें 1500 रुपए प्रतिमाह मुख्यमंत्री क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत दिए जाते हैं, वही उन्हें यूपी में सप्लीमेंट व टांडा में इलाज के लिए जाने पर आने-जाने का किराया भी दिया जाता है।

टीबी के मरीजों का सबसे अधिक खर्चा सीटी स्कैन या CT/MRI Scan जैसे टेस्टों में होता था, अब सरकार ने मुख्यमंत्री योजना के अंतर्गत टीबी के मरीजों के लिए यह जांच भी मुक्त कर दी है। यदि किसी ने बाजार से टेस्ट करवाए हैं तो उसे भी यह पैसे रिवर्स कर दिए जाते हैं।
टीवी का कीटाणु जब हमारे शरीर में प्रवेश करता है और अगर हमारी बीमारी से लड़ने की ताकत अच्छी हो तो वह नुकसान नहीं पहुंचा पाता और उस अवस्था को लेटेंट टीबी कहते हैं। जब भी व्यक्ति की किसी वजह से बीमारी से लड़ने की ताकत कम होती है तो यह लेटेंट टीबी बीमारी का रूप धारण कर लेती है – जिलों में रोकथाम के लिए टीबी के बचाव की दवाई भी दी जा रही है – लेटेंट टीबी का इलाज करके भविष्य में टीबी में बहुत कमी आने की उम्मीद है जिसमें मुख्य चुनौती टीबी से होने वाली मृत्यु दर को कम करना है।

अभी भी टीबी की मृत्यु दर कोविड-19 दर से अधिक है । टीवी के मरीजों की बेहतर देखभाल के लिए समुदाय की भूमिका सुदृढ़ करने के लिए विशेष अभियान चलाया जाएगा जिसमें सरकार के प्रयासों के अतिरिक्त समुदाय द्वारा मरीजों को विभिन्न प्रकार की मदद के प्रयास किए जाएंगे।

संडे एसीएफ चैंपियन के अंतर्गत घर-घर आशा कार्यकर्ता द्वारा Sunday को लोगों के स्वास्थ्य के बारे में जांच की जाएगी व किसी को अगर टेस्ट की जरूरत हो तो उसे घर-द्वार पर ही यह सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। वही मरीजों को जेब से होने वाला खर्चा जो है उसे कम करने के लिए सरकार व विभाग प्रयासरत है।
कोविड-19 के दौरान विभिन्न स्वास्थ्य गतिविधियों में बाधा आई पर स्वास्थ्य विभाग ने टीबी अभियान में कमी नहीं आने दी व घर-घर जाकर हमारे कार्यकर्ताओं ने इस मिशन को आगे बढ़ाया।
इस बार के अभियान का नारा है टीबी की रोकथाम में इन्वेस्ट करें व जीवन बचाएंअभियान को आगे बढ़ाने के लिए मीडिया, टीबी चैंपियन, विभिन्न विभाग एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं और टीबी की मुहिम को और बल दे सकते हैं – मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने आह्वान किया कि सभी इस जन आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लें।

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