वाईस चान्सलर डॉ. एच.के. चौधरी फिर मीडिया की सुर्खियों में… देखिए, जाते-जाते लोकप्रियता पाने के चक्कर में अब क्या गुल खिला डाला

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*VC हो तो ऐसा… दोबरा वीसी बनने की चाह में सरकार, किसानों और मीडिया को मूर्ख बनाने हेतु बिना तकनीक के ही रोप डाले बासमती धान के पौधे*
वीसी के चाटुकारों ने उन्हें यह नहीं बताया कि धान रोपने का समय कब का समाप्त हो चुका है और यह फोटोशूट हानिकारक भी हो सकता है।
RAJESH SURYAVANSHI
Editor-in-Chief
Himachal Reporter Media Group
जैसाकि सर्वविदित है कि चौधरी सरवन कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय (H P Agriculture University) पालम्पुर के माननीय वाईस चांसलर डॉ. हरिन्दर कुमार चौधरी किसी न किसी विषय को लेकर हमेशा चर्चा में बने रहने हेतु तत्पर रहते हैं भले ही वह मामला कर्मचारियों से जुड़ा हो, इमरजेंसी अथवा amalgamated फण्ड से गेट या अन्य निर्माण का हो, ठेकेदारों व ठेकों के आबंटन से जुड़ा हो या प्रोफेसर्स, विद्यार्थियों या अन्यों के मसलों से संबंधित हो, अथवा विभागों व कर्मचारियों के हस्तांतरण का मुद्दा हो। चर्चाओं में बने रह कर लोकप्रियता हासिल करना उनका passion है।
मीडिया में बने रह कर टीआरपी बटोरना कोई बुरी बात नहीं लेकिन ऐसे कार्य करके चर्चा में रहना कदापि हितकर नहीं होता जिससे स्थिति हास्यास्पद बन जाए तथा एक गरिमापूर्ण पद पर विराजित उच्चाधिकारी मज़ाक का पात्र बन कर रह जाए।
ऐसा कई वार इसलिए भी होता है जब हमारे व्यक्तित्व में संबंधित जानकारी का अभाव हो, जब हमारी काबिलियत किसी काम से मैच न करती हो। ठीक वैसे ही जैसे किसी कला स्नातक को विज्ञान से संबंधित विभाग का मुखिया बना दिया जाए, तो स्थिति कितनी हास्यास्पद होगी यानी उस विभाग का तो भगवान ही मालिक होगा।
हमारे वीसी महोदय भी जबसे यहां आए है तभी से कुछ अजीबोगरीब परिस्थितियों से गुज़र रहे हैं।

ऐसा इसलिए हो रहा है कि वह स्नातक हैं बेसिक साइंस में और काम संभाले हुए हैं एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी का जो उनकी qualifications से दूर-दूर तक मैच नहीं करता। हालांकि HPU शिमला से उन्होंने बेसिक साइंस स्नातक की डिग्री हासिल करके उस समय के नियमों के अनुसार पीएचडी भी कर ली लेकिन अन्ततः उनका ज्ञान अधिकतर प्रयोगशाला तक ही सीमित रहा। फ़ील्ड में अन्नदाता तक नहीं पहुंच पाया। इसी कारण वह एग्रीकल्चर विषय की गहराइयों से अछूते हैं।

अब मुद्दे की बात पर आते हैं। उल्लेखनीय है कि 22 अगस्त 2020 को डॉ. हरिन्दर कुमार चौधरी संघ की शाखाओं में भाग लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री ठाकुर जयराम की नज़दीकियों से लाभान्वित होकर वाइस चांसलर की राजगद्दी पर काबिज हो गए और सत्ता का खूब सुख भोगा परंतु जैसे-जैसे 21 अगस्त 2023 शाम 5 बजे का समय निकट आ रहा है, उनके दिल की धड़कनें तेज़ होती प्रतीत हो रही हैं।
ऐसा इसलिए हो रहा है कि वह उस समय भी एड़ी-चोटी का जोर लगाकर अपने प्रतिद्वंदियों को जैसे-तैसे मात देकर वीसी की कुर्सी पर विराजमान होने में सफल तो गए लेकिन अब जबकि उनका कार्यकाल हाशिये पर है, मात्र आज प्रथम अगस्त के बाद मात्र 20 दिन शेष बचे हैं सत्ता सुख के। इसलिए इस थोड़े से शेष दिनों में वह किसी भी तरीके से टीआरपी बटोर कर सरकार की आंखों के तारे बने रहना चाहते हैं जोकि स्वाभाविक भी है।

ऐसे में उनके आगे सबसे बड़ी चुनौती है स्वयं को कांग्रेस भक्त साबित करने की और उसके लिए विभिन्न तरीकों से वह सरकार और सरकारी नुमाईंदों को खुश करने का भरसक प्रयत्न करने में जुटे हुए हैं ताकि सरकार की आंखों में धूल झोंक कर फिर से वीसी की पदवी हासिल की जा सके।
अब मज़ेदार बात यह है कि वह अपने कार्यकलापों से अपने दामन पर लगे भाजपाई होने के ठप्पे को कितनी सूझबूझ से हटा कर लोकप्रिय संघर्षशील व तरक्की याफ्ता मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविन्दर सिंह सुक्खू व उनकी टीम पर अपना जादू चलाने में कामयाब हो पाते हैं। या फिर सुक्खू अपनी सूझबूझ से किसी कांग्रेस से जुड़े वफादार को अपना सिपहसालार बनाते हैं, जोकि गहराई से मिट्टी से जुड़ा हो, एग्रीकल्चर विषय से जुड़ा हो और उस पर पूरी पकड़ रखता हो , जोकि सभी योग्यताएं पूरी करते हुए यूनिवर्सिटी को आगे ले जाने की काबिलियत रखता हो।

हम बात कर रहे थे कि वास्तव में ऐसा क्या हुआ जो वीसी की योग्यता पर सवालिया निशान छोड़ गया?

हुआ यूं कि एक योजनाबद्ध तरीके से डॉ. एचके चौधरी ने मीडिया की सुर्खियां बटोर कर वीसी पद की एक्सटेंशन हेतु सरकार को खुश करने के चक्कर में एक चक्रव्यूह रचा। मीडिया को साथ लेकर वह उसतेहड़ गांव के एक किसान के छब्बड़नुमा खेत में फ़िल्मी स्टाइल में, एक जांबाज़ हीरो का किरदार निभाते हुए आनन-फानन में कूद पड़े, टूट पड़े बेमौसमी बासमती धान रोपने हेतु। लेकिन अफसोस यह रहा कि विषयवस्तु के ज्ञान के अभाव में वह जल्दबाजी में अफरा-तफरी में धान यहां-वहां रोपते गए जबकि धान के पौधे विशेष तकनीक के अनुसार लाइनों में रोपे जाते हैं।

वहां उपस्थित कुछ जानकार अपनी हंसी नहीं रोक पाए और स्थिति हास्यास्पद बन कर रह गई।

दुख इस बात का है कि उनके साथ उनके जो चाटुकार थे वह भी वीसी साहब को समझाने में नाकाम रहे वरना वह मजाक का पात्र नहीं बनते।

इसके अतिरिक्त वीसी साहब से सबसे बड़ी गलती हो गई कि उन्होंने जुलाई महीने के अंत में उस समय धान के पौधे रोप डाले जबकि धान की रोपाई का समय लगभग 20-25 दिन पहले समाप्त हो चुका था ।

30 जून अंतिम तिथि थी जबकि वीसी साहब ने जुलाई महीने के अंत में पौधों की रोपाई करके भोले भाले गरीब किसानों को गुमराह कर दिया। मीडिया भी गुमराह होकर वीसी साहिब की अपने-अपने स्टाइल में तारीफ़ों के पुल बांधने में मशगूल हो गए, बिना सच्चाई पर से पर्दा हटाए।

इससे पहले कि इस गलती को लोग समझ पाते PRESS NOTE मीडिया ने उन्हें हीरो बना डाला और लिख दिया कि वीसी हो तो ऐसा लेकिन अब जबकि पोल खुल चुकी है तो लोग पूछ रहे हैं यह क्या वीसी होना चाहिए ऐसा?


लोकप्रियता लूट कर टीआरपी बढ़ाना बुरी बात नहीं लेकिन इस बात का ध्यान रखना भी आवश्यक है कि इससे किसी का नुकसान न हो, स्थिति हास्यास्पद न बने तथा वाईस चांसलर जैसे गरिमापूर्ण पद को ठेस भी न पहुंचे।


INDIA REPORTER TODAY ने विषय की गम्भीरता को देखते हुए खोजी पत्रकारिता का सहारा लेना उचित समझा क्योंकि बिना सबूत किसी पर प्रश्नचिन्ह लगाना अनुचित है।

खासी छानबीन करने पर ज्ञात हुआ कि बासमती धान के पौधों की रोपाई का समय 30 जून तक था और सरकार को खुश करने के चक्कर में झूठी लोकप्रियता हासिल करने हेतु भोले-भाले किसानों को गुमराह करते हुए उन्होंने गलत समय पर धान रोककर किसानों को मूर्ख बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रखी। यह सर्वथा अनुचित है इसका प्रमाण आप स्वयं देख सकते हैं।

प्राप्त जानकारी के अनुसार ये पौधे तब रोपे जाते हैं जब इनकी आयु मात्र 20-25 दिन की होती है ताकि समय पर फसल पके और उसमें बढ़िया दाने आ सकें। जब पौधे ही 40-50 दिन पुराने रोपेंगे तो फसल क्या ख़ाक पल्ले पड़ेगी। इसका अंदाज़ा तो एक आम किसान भी लगा सकता है।

जब वाईस चान्सलर महोदय ही गलत समय पर बासमती धान के पौधों की रोपाई कर रहे हैं तो प्रदेश के किसानों को क्या सबक मिलेगा। यह गलती अक्षम्य है। किसानों के हितों से जोरदार खिलवाड़ है।

अतः सरकारी नुमाईंदों को सतर्क रहकर अगले वीसी की नियुक्ति करनी होगी ताकि यूनिवर्सिटी को ऊंचाइयों तक ले जाया जा सके और प्रदेश के किसानों को गुमराह होने से बचाया जा सके। क्या यह उचित है कि हम अपनी फोटो खिंचवाने के चक्कर में अपना उल्लू सीधा करने गवतु भोलेभाले किसानों के हितों से खिलवाड़ करें?

वीसी महोदय का पक्ष जानने के भरसक प्रयास किये गए परंतु वह उपलब्ध नहीं हो सके।

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