वीरभद्र, बिगुलर और बीड़ी का बंडल

सच्ची कहानी,एक पत्रकार की जुबानी

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*वीरभद्र, बिगुलर और बीड़ी का बंडल*

🌹सच्ची कहानी,एक पत्रकार की जुबानी

मेरी यादों की पोटली में इससे दिलचस्प किस्सा कोई और नहीं है। आज भी जब मुझे ये वाकया याद आता है तो में अकेले ही जोर जोर से हंसता हूं।
बात उन दिनों की है जब हमारे वरिष्ठ पत्रकार साथी मुकेश अग्निहोत्री पत्रकारिता छोड़ राजनीति में आए थे। जीत के बाद उन्हें मुख्य संसदीय सचिव बनाया गया। चुनावी जीत के बाद मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का उनके क्षेत्र का पहला पहला दौरा था। उस दौर में टीवी वाला इकलौता पत्रकार होने के नाते मेरी पूछ कुछ ज्यादा थी।अब तो इतने लोगों के घरों में टीवी नहीं है जितने टीवी के पत्रकार। खैर मैं उस दौरे पर शिमला से वीरभद्र सिंह के साथ गया। कांगड़ में हेलीकॉप्टर उतरा तो वहीं मैदान में मुख्यमंत्री को गार्द की सलामी का इंतजाम था।
सलामी शुरू हुई। बिगुलर ने बिगुल में फूंक मारी लेकिन स्वर नहीं फूटा। उसने और ज़ोर लगाया लेकिन बिगुल नहीं बजी। अब तक सबका ध्यान उसपर जा चुका था और उसका मुंह तरबूज की तरह लाल हो गया था। उसने आखिरी कोशिश की
……. भां… की आवाज अाई और बिगुल से बीड़ी का एक बंडल किसी सांप की तरह लहराता हुआ बाहर गिरा। सबकी हंसी छूट गई। वीरभद्र सिंह ने भी जोर का ठहाका लगाया। उसके बाद बाकायदा बिगुल के साथ सलामी हुई।सलामी के बाद मुख्यमंत्री चौकी से उतरकर सीधे बिगुलर के पास गए। नीचे पड़ा बीड़ी का बंडल उठाया और उसकी जेब में डालते हुए कहा
…. बीड़ी पीना अच्छी बात नहीं है

बिगुलर भरी सर्दी में पसीने से नहा चुका था। उधर ऊना के पुलिस कप्तान उसे आंखों ही आंखों में दो तीन बार चबा चुके थे।
काफिला आगे बढ़ने को हुआ तो वीरभद्र सिंह अचानक गाड़ी से उतरे। पुलिस कप्तान को बुलाया और बिगुलर को भी। फिर सख्त भाषा में पुलिस कप्तान को आदेश दिया…..खबरदार जो इसपर कोई एक्शन हुआ।

और फिर मुस्कुरा कर बोले…. बाजे वालों को आदत होती बीड़ियां बाजे में छुपाने की ताकि कोई दूसरा ना पी ले।
ये वीरभद्र सिंह का मानवीय रूप था। अलबत्ता पहली कारवाई तो एसपी पर होती और बिगुल बजाने वाले का क्या होता यह बताने की जरूरत ही नहीं।
कुछ बरस बाद जब एक बार फिर ऊना दौरे के दौरान उस बिगुलर से मुलाकात हुई तो पता चला के उसने उसी दिन बीड़ी पीना छोड़ दी थी। मैंने वीरभद्र सिंह को बताया ती उन्होंने कहा…. अगर सजा दी होती तो ऐसा सुधार नहीं होता,पता चलता टेंशन में कोई दूसरा नशा करने लग जाता।

संजीव शर्मा,वरिष्ठ पत्रकार

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