किधर जा रहे नीतीश कुमार, पेगासस?

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नई दिल्ली: विपक्ष संसद नहीं चलने दे रहा है और संसद का मानसून सत्र हंगामे में बर्बाद हो रहा है। विपक्ष के हो-हंगामे और शोर-शराबे में अब नीतीश कुमार का भी स्वर मिल गया है। नीतीश ने इस मामले की जांच कराए जाने और संसद में इस पर चर्चा होने की बात कही है। हालांकि उनके इस बयान पर  राजद सांसद मनोज झा ने कहा, मैं उनसे अपनी मांग पर कायम रहने का अनुरोध करूंगा। मुझे उम्मीद है कि वह दबाव में नहीं आएंगे और यह नहीं कहेंगे कि मेरे बयान का गलत मतलब निकाला गया।

इससे पहले नीतीश कुमार किसान आंदोलन का भी समर्थन कर चुके हैं। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का मुख्य घटक दल जनता दल (यूनाइटेड) केंद्र सरकार की राय के विपरीत जाति जनगणना कराने पर भी जोर दे रहा है। सवाल है कि आखिर नीतीश कुमार केंद्र सरकार की नीतियों का इस तरह विरोध क्यों कर रहे हैं।

नीतीश के इस विरोधी रवैए के पीछे की सबसे बड़ी वजह पिछले महीने मोदी कैबिनेट में हुए विस्तार को समझा जा रहा है। माना जा रहा है कि नीतीश जदयू कोटे से मोदी कैबिनेट में तीन से चार मंत्री बनाना चाहते थे लेकिन बात एक पर ही बनी। जदयू कोटे से सिर्फ आरसीपी सिंह को मंत्री बनाया गया। इससे पहले 2019 में मोदी सरकार की दूसरी पारी शुरू होने पर भी नीतीश कुमार ने जदयू कोटे से दो-तीन मंत्री पद मांगा था। तब वे अपने बेहद खास माने जाने वाले और अभी जदयू अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह और आरसीपी सिंह को मंत्री बनाने के लिए जोर डाल रहे थे। लेकिन भारतीय जनता पार्टी जेडीयू को मोदी कैबिनेट में एक से ज्यादा सीट देने को तैयार नहीं थी। जिससे नाराज होकर तब पार्टी के अध्यक्ष पद पर रहे नीतीश कुमार ने मंत्रिमंडल में शामिल होने से इनकार कर दिया था।

दो साल बाद फिर वही हालात
दो साल बाद फिर वही हालात पैदा हो गए। भाजपा ने इस बार भी जदयू को केवल एक सीट देने की पेशकश की। बिहार में अपना पलड़ा भारी होने के कारण भाजपा इस बार जदयू के दबाव में बिल्कुल नहीं आई। लिहाजा जदयू को केवल एक सीट पर मानना पड़ा। इसलिए माना जा रहा है कि पेगासस मुद्दे पर अपनी राय जाहिर करके नीतीश ने एक तरह से अपनी नाराजगी भी जाहिर कर दी है और सरकार पर दबाव बना दिया है।

नीतीश कुमार एनडीए के बड़े नेताओं में शुमार हैं। बिहार  में बीजेपी के सहयोग से वे मुख्यमंत्री भी हैं। ऐसे में अगर वे अपने ही सहयोगी से जांच की मांग कर रहे हैं तो संसद में इस मुद्दे पर हंगामा कर रहे विपक्ष को इससे बल मिलेगा और उसका जोश बढ़ेगा। दूसरी तरफ अपने ही सहयोगी दल से इस तरह की मांग होने पर सरकार के लिए मुश्किल हो सकती है।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के केंद्रीय राजनीति में सक्रिय होने के बाद राजनीतिक तस्वीर बदल रही है। राजनीति में ममता बनर्जी के बढ़ रहे कद को देखते हुए लगभग सभी पार्टियां दबे स्वर में उनके प्रधानमंत्री बनने की योग्यता की बात करने लगे हैं। ऐसे में जदयू भी नीतीश कुमार को उनके बराबरी में खड़ा रखना चाहती है। नीतीश कुमार प्रधानमंत्री मैटेरियल हैं, पार्टी नेता उपेंद्र कुशवाहा के इस बयान को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा रहा है। कहा जा रहा है कि चूंकि ममता बनर्जी ने इस मामले पर जांच आयोग का गठन किया है,  इसलिए पेगासस जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर बयान देकर नीतीश कुमार एनडीए से अलग एक लाईन लेने की कोशिश कर रहे हैं । इससे यह जाहिर करना चाहते हैं कि जरूरी नहीं कि वे भाजपा के हर फैसले पर हां में हां मिलाएं। हालांकि सूत्रों का कहना है कि विपक्षी पार्टियां नीतीश कुमार के इस बयान को मुद्दा बनाए उससे पहले पार्टी इसे मुख्यमंत्री की व्यक्तिगत राय बताकर इस मामले से किनारा करने की कोशिश करेगी।

 

 

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